

बिंदुखत्ता। वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत बिंदुखत्ता को राजस्व ग्राम घोषित करने की प्रक्रिया आठ माह से लंबित है, लेकिन नेताओं और अधिकारियों की लापरवाही और नियमों की गलत व्याख्या के कारण 80 हजार की आबादी बुनियादी सुविधाओं से वंचित है।
इस गंभीर मुद्दे को लेकर पूर्व सैनिक संगठन और वन अधिकार समिति ने आज उपजिलाधिकारी (SDM) के माध्यम से राज्य स्तरीय वनाधिकार निगरानी समिति को एक तीखा ज्ञापन सौंपा।
वन मंत्री का जवाब ही गलत, नियमों की सही समझ नहीं!
इस मामले को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य और विधायक हरीश धामी ने उठाया था, लेकिन वन मंत्री सुबोध उनियाल ने जवाब देते हुए कहा कि 75 वर्ष पूरे होना आवश्यक है, जबकि वनाधिकार अधिनियम में ऐसी कोई बाध्यता नहीं है।
यह जवाब ही इस बात का सबूत है कि सरकार को इस कानून की सही जानकारी नहीं है।वनाधिकार अधिनियम 2006 की धारा 2(ण) और जनजाति मंत्रालय के स्पष्ट निर्देशों के अनुसार “अन्य परंपरागत वन निवासी” (OTFD) समुदाय को तीन पीढ़ियों से वनाश्रित होने का प्रमाण देना होता है, न कि किसी विशेष स्थान पर 75 वर्ष से रहने का।
हरिद्वार और रामनगर में इसी आधार पर वनाधिकार दावे स्वीकृत किए गए हैं, लेकिन बिंदुखत्ता के मामले में मनमाने ढंग से अलग नियम लागू किए जा रहे हैं।*डीएम नैनीताल ने भी स्पष्ट किया।
– 75 साल की बाध्यता नहीं
इस संबंध में नैनीताल की जिलाधिकारी (DM) ने भी अपनी रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से लिखा है कि वनाधिकार अधिनियम में 75 वर्षों से एक ही स्थान पर निवास करना आवश्यक नहीं है। फिर भी शासन इस मुद्दे पर कोई ठोस कदम नहीं उठा रहा। हरिद्वार और रामनगर में लागू हुआ सही नियम, फिर बिंदुखत्ता से अन्याय क्यों?
हरिद्वार की वनाधिकार पत्रावली में, 1952 में कुछ छात्रों के स्थानांतरण प्रमाण पत्र (TC) को आधार बनाकर उनकी दूसरी पीढ़ी को मान्यता दी गई और वर्तमान पीढ़ी को तीसरी पीढ़ी माना गया। इस आधार पर जिला स्तरीय समिति (DLC) ने वनाधिकार दावा स्वीकृत कर दिया।
रामनगर में भी 1933 के एक मानचित्र को आधार बनाकर बसासत सिद्ध की गई, और 75 वर्षों की बाध्यता नहीं मानी गई।अगर हरिद्वार और रामनगर में यह नियम लागू हो सकता है, तो फिर बिंदुखत्ता में क्यों नहीं? क्या सरकार जानबूझकर बिंदुखत्ता के नागरिकों के साथ भेदभाव कर रही है?
अधिसूचना जारी करने में देरी – जनता से बुनियादी सुविधाएं छीनी जा रही हैं! वनाधिकार समिति ने अपने ज्ञापन में चेतावनी दी है कि यदि बिंदुखत्ता को राजस्व ग्राम घोषित नहीं किया गया, तो जनता आंदोलन के लिए बाध्य होगी।
80,000 की आबादी पिछले आठ महीनों से बिजली, पानी, सिंचाई, पंचायती राज, कृषि, सड़क और बैंक ऋण जैसी बुनियादी सरकारी योजनाओं से वंचित है।*बिंदुखत्ता के नागरिकों का सीधा सवाल है।
“जब एक ही कानून, एक ही राज्य में अलग-अलग लागू किया जा सकता है, तो हमारे साथ भेदभाव क्यों?” सरकार को अविलंब अधिसूचना जारी करनी होगी!
वनाधिकार समिति ने मांग की है कि सरकार तत्काल इस मुद्दे का संज्ञान ले और वनाधिकार अधिनियम 2006 के तहत बिंदुखत्ता को राजस्व ग्राम घोषित करे। अन्यथा, जल्द ही बड़ा जनांदोलन खड़ा किया जाएगा।












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