

भारत की सांस्कृतिक परंपराओं में करवा चौथ एक ऐसा पर्व है जो नारी शक्ति की आस्था, प्रेम और समर्पण का जीवंत प्रतीक माना जाता है। यह पर्व हर वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है।
विवाहित महिलाएँ अपने पति की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं। इस पर्व का धार्मिक, सामाजिक और भावनात्मक तीनों ही स्तरों पर गहरा महत्व है।
करवा चौथ की शुरुआत प्रातःकाल सरगी ग्रहण करने से होती है, जो सास द्वारा बहू को स्नेह और आशीर्वाद स्वरूप दी जाती है। इसके बाद महिलाएँ पूरे दिन व्रत रखती हैं, बिना अन्न और जल के और संध्या समय विधिवत पूजन करती हैं।
पूजा में करवा (मिट्टी का छोटा घड़ा) और चौथ माता की प्रतिमा की आराधना की जाती है। इस अवसर पर महिलाएँ पारंपरिक वेशभूषा में सोलह श्रृंगार करके एकत्र होती हैं, कथा सुनती हैं और पारिवारिक सौहार्द का उत्सव मनाती हैं।
रात के समय जब चाँद उदित होता है, तब महिलाएँ छलनी से चाँद और अपने पति का चेहरा देखकर अर्घ्य अर्पित करती हैं।
इसके बाद पति के हाथों से जल ग्रहण कर व्रत खोलती हैं। यह दृश्य भारतीय संस्कृति में प्रेम, विश्वास और परस्पर समर्पण का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है।
करवा चौथ केवल एक धार्मिक व्रत नहीं, बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी परिवार में प्रेम, निष्ठा और एकता को मजबूत करने का माध्यम है।
यह पर्व यह संदेश देता है कि वैवाहिक जीवन में विश्वास, त्याग और समर्पण ही सबसे बड़ा बल है। आधुनिक युग में भी जब जीवनशैली में परिवर्तन आया है, तब भी यह पर्व उसी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाया जाता है।
विकृत होता स्वरूप और व्यवसायीकरण
समय के साथ करवा चौथ का स्वरूप भी बदलने लगा है। जहाँ पहले यह पर्व सादगी, प्रेम और आस्था का प्रतीक था, वहीं आज इसके आयोजन में दिखावे और भौतिकता का प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है।
पहले महिलाएँ मिट्टी के करवे से पूजा करती थीं, अब उनकी जगह महंगे डिज़ाइनर पूजन थाल और सजावटी वस्तुएँ ले चुकी हैं। चांदी की छलनी और थाली तो अब स्टेटस सिंबल बन गये हैं।
पारंपरिक कथा और भावना की जगह अब सोशल मीडिया पोस्ट, फोटोशूट और फैशन प्रतियोगिताओं ने ले ली है।
बाज़ारों में करवा चौथ एक “फेस्टिव ब्रांड” बन चुका है। कपड़ों, गहनों, सौंदर्य प्रसाधनों और गिफ्ट आइटम्स की बिक्री इस दिन चरम पर होती है।
होटल और ब्यूटी पार्लर “करवा चौथ पैकेज” के नाम पर विशेष ऑफर देते हैं। यह सब मिलकर इस पर्व को एक व्यावसायिक उत्सव में बदल रहे हैं, जहाँ मूल भावना कहीं पीछे छूटती जा रही है।
आस्था का यह पर्व केवल सौंदर्य या दिखावे का माध्यम नहीं है, बल्कि त्याग, विश्वास और पारिवारिक संबंधों की गहराई को उजागर करने का अवसर है।
इसलिए आवश्यक है कि आधुनिकता के साथ चलते हुए भी हम इस पर्व की मूल भावना “प्रेम, समर्पण और आस्था” को बनाए रखें।
तभी करवा चौथ अपनी वास्तविक गरिमा और महत्व को संजोए रख पाएगा।
सहयोग : विनायक फीचर्स


























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