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बिंदुखत्ता को नहीं मिल पा रहा वनाधिकार कानून व्यवस्था का लाभ! पढ़ें प्रधान सम्पादक *जीवन जोशी* की एक्सक्लूसिव रिपोर्ट…

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बिंदुखत्ता। वनाधिकार कानून व्यवस्था लागू करने में कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है जिससे बिंदुखत्ता को इस कानून का लाभ नहीं मिल पा रहा है। उत्तराखंड में वन अधिकार अधिनियम (FRA) के कम कार्यान्वयन के कई कारण हैं:।

1_ वन विभाग की प्रतिरोधकता**: वन विभाग ने FRA के तहत अधिकारों को मान्यता देने में रुचि नहीं दिखाई है। अधिकारियों को लगता है कि यह अधिनियम उनके नियंत्रण को कमजोर कर देगा, जिससे वे इसका विरोध करते हैं और प्रक्रिया को धीमा करते हैं।

2_ स्थानीय समुदायों की जागरूकता की कमी**: उत्तराखंड में कई स्थानीय और आदिवासी समुदायों को FRA के प्रावधानों और दावों की प्रक्रिया के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं है। इसके परिणामस्वरूप, वे प्रभावी दावे करने में असमर्थ रहते हैं।

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3_ प्रशासनिक बाधाएं**: राज्य स्तर पर FRA को लागू करने के लिए आवश्यक संसाधनों और क्षमताओं की कमी है। प्रशासनिक प्रक्रियाएं जटिल और समय लेने वाली हैं, जिससे दावों की जांच और स्वीकृति में देरी होती है।

4_ नीतिगत विरोधाभास**: अन्य कानूनी और नीतिगत ढांचे FRA के कार्यान्वयन में बाधा उत्पन्न करते हैं। उदाहरण के लिए, वन भूमि के संरक्षण और पुनर्वास के लिए बनाई गई नीतियों ने FRA के तहत दिए गए अधिकारों को कमजोर किया है।

5_ राजनीतिक और सामाजिक कारक**: राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और सामाजिक स्तर पर समर्थन की कमी भी एक बड़ा कारण है। FRA के प्रति राजनीतिक प्रतिबद्धता का अभाव इसे प्रभावी ढंग से लागू करने में बाधा उत्पन्न करता है ।

6_विकास परियोजनाओं का प्रभाव**: उत्तराखंड में विभिन्न विकास परियोजनाओं के कारण वन भूमि का अधिग्रहण हुआ है, जिसमें ग्राम सभाओं की सहमति नहीं ली गई।

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यह FRA का उल्लंघन है और स्थानीय समुदायों के अधिकारों को कमजोर करता है।ये सभी कारक मिलकर उत्तराखंड में FRA के प्रभावी कार्यान्वयन को बाधित करते हैं, जिससे कई योग्य समुदाय अपने अधिकारों से वंचित रह जाते हैं।

अधिक जानकारी और जागरूकता फैलाने, प्रशासनिक सुधार करने और राजनीतिक समर्थन बढ़ाने से इस स्थिति में सुधार लाया जा सकता है।

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