बेंत की लकड़ी से काफी मजबूत तथा टिकाऊ फर्नीचर बनता है। इसके अतिरिक्त बेंत को छीलना तथा पॉलिश करना काफी सरल है। काफी कम समय में तथा कम श्रम में काफी अधिक मात्रा में बेंत के फर्नीचर तैयार किए जा सकते हैं। इस दृष्टि से बेंत एक अत्यन्त उपयोगी एवं बहुमूल्य पौधा है।बेंत पामेसी (एरिकेसी) कुल का पौधा है जो साधारणतया किसी पेड़ के तने के सहारे ऊपर उठता है। इसकी लम्बाई कुछ मीटर से लेकर 70-75 मीटर हो सकती है। रतन बेंत कैलामस रटांग की लम्बाई सबसे अधिक लगभग 500 फीट (150 मीटर) तक पाई गई है। यह उपोष्ण अथवा उष्ण कटिबन्धीय जलवायु का पौधा है।
यह साधारणतया पेड़ों के सहारे झुरमुटों के रूप में उगता है। परन्तु यह अकेले भी उग सकता है, जो कुछ मीटर जाने के बाद पुन: ढह जाता है। यह दलदली या जल जमाव वाले स्थानों पर भी उग सकता है। इसमें सूखा सहने की क्षमता भी होती है। पानी की उपलब्धता में इसकी वृद्धि दर काफी तेज होती है। बेंत की अधिकतर प्रजातियों की ताप सहनशीलता 400स्न से भी नीचे तक हो सकती है। बेंत की बढ़वार बलुई दोमट मिट्टी में अच्छी होती है।बेंत का झुरमुट एक बार तैयार हो जाने के बाद यह निरन्तर बेंत का उत्पादन करते रहते हैं।
प्रत्येक 5-6 वर्षों में कटाई करके प्रति एकड़ खेत से मोटे तनों वाले बेंत (जैसे कैलेमस लैटिफोलियस, कैलेमस एकैन्थोस पैथस, कैलेमस टेनुइस, कैलेमस रेडिकलिस इत्यादि) से एक मुश्त अच्छी आय हो सकती है। इस प्रकार किसानों के लिये बेंत हरा सोना सिद्ध हो सकता है।बेंत की कुछ प्रजातियाँ पतले तने वाली (व्यास लगभग 1 सेमी – 1.5 सेमी) तथा कुछ मोटे तने वाली (व्यास लगभग 2 सेमी – 3 सेमी) होती हैं।
बेंत की कुछ प्रजातियों का व्यास 6 सेमी तक हो सकता है।रोपण के 2-3 वर्षों में बेंत प्रतिवर्ष नये बीज भी देने लगते हैं जो छिटक कर पुन: नये पौधे बनाते हैं। प्रत्येक पाँचवें वर्ष बेंत की कटाई करके, जहाँ कोई भी फसल नहीं उगती है, बिना किसी खर्च के प्रति एकड़ वर्तमान कीमतों पर लाखों रुपये के बेंत प्राप्त किए जा सकते हैं, बशर्ते सरकारी या निजी सप्लायरों द्वारा बेंत के बीज या नर्सरी उपलब्ध कराये जायें। जाड़े के दिनों में जैसे-जैसे पानी सूखता जाता है, गीली मिट्टी में बेतों के बीजों की बुवाई करके जुलाई में पानी भरने से पहले बेंतों की पौध तैयार की जा सकती है। बेंत भारतीय सामाजिक अर्थव्यवस्था की रीढ़ बन सकता है।
बेंत का उपयोग फर्नीचर से लेकर कई तरह के हैण्डीक्राफ्ट तथा गृह निर्माण सामग्री के रूप में हो सकता है। उत्पादन अधिक होने पर सस्ते बेंत के बंगले बनाये जा सकते हैं। बेंत की उपलब्धता अधिक होने पर, लतादार फल और सब्जियाँ जैसे अंगूर, कीवी , गर्ड लाइक केयोटी , पैसन फल , करेला , पेड़ टमाटर , तोरई , इत्यादि उगाने के लिये तथा मुर्गी पालन एवं बत्तख पालन के लिये, जालीदार फ्रेम बनाने के उपयोग में लाया जा सकता है। बेंत के जालीदार फ्रेम पर मुर्गी पालन करने से मुर्गियों का बीट झिरी से अलग गिर जायेगा। इससे मुर्गियों को साफ-सुथरा रखने में सुविधा होगी तथा फर्श गीला होने की समस्या नहीं रहेगी।
बेंत का उपयोग स्कूल कॉलेज के फर्नीचर बनाने तक में हो सकता है। चूँकि बेंत छाया में भी उग सकने वाला पौधा है जिसे शीशम, नारियल, पाम, ताड़ , जैटोब जल जमाव में उगने योग्य, फर्नीचर के लिये उपयुक्त लकड़ी), अर्जुन , के वृक्षों के सहारे भी उगाया जा सकता है। बेंत की लकड़ी कार्बन सिंक की भाँति व्यवहार करती है। यदि पूरे संसार के उष्ण एवं उपोष्ण जलवायु के क्षेत्रों में जल जमाव वाली खाली बंजर जमीन पर बेंत की खेती प्रारम्भ की जाए तो ग्लोबल वॉर्मिंग की समस्या से निबटने में काफी मदद मिलेगी।
रोजगार के अवसर : बेंत के उत्पादन से लेकर विपणन तक, हर स्तर पर रोजगार उपलब्ध होता है। बेंत की कटाई, छिलाई, पॉलिशिंग से लेकर फर्नीचरों (पलंग, चारपाई, मेज, कुर्सी, स्टूल, किताबें एवं बर्तन रखने के रैक, आलमारी), विभिन्न हैण्डीक्राफ्ट, टोकरी, छाता की छड़ी, टहलने की छड़ी इत्यादि के निर्माण में रोजगार के काफी अवसर हैं। बेंत का उत्पादन बढ़ने पर यह कुटीर उद्योग का रूप ले सकता है।
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