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जिम कार्बेट का 148वां जन्मदिन आज! पढ़ें जिम कार्बेट पर निबंध…

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गरीबों के हमदर्द जिम को प्रणाम! शिकार कथाओं के लेखक,मशहूर शिकारी और भारत एवं भारत के गरीबों से अगाध प्रेम करने वाले नेक दिल इंसान जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट यानी जिम कॉर्बेट का आज 148 वां जन्मदिन है।

जेम्स एडवर्ड कॉर्बेट का जन्म 25 जुलाई, 1875 को नैनीताल में हुआ था।उनके पिता क्रिस्टोफर विलियम कॉर्बेट नैनीताल के हेड पोस्ट ऑफिस में पोस्ट मास्टर थे। उनकी माँ का नाम मैरी जेन कॉर्बेट था।

जिम,क्रिस्टोफर विलियम कॉर्बेट और मैरी जेन की आठवीं,क्रिस्टोफर विलियम कॉर्बेट की ग्यारहवीं जबकि मैरी जेन की बारहवीं संतान थे।1893 से 1917 के दौरान मोकामाघाट में रेलवे की नौकरी के कालखंड को छोड़कर जिम कॉर्बेट का अधिकांश जीवन नैनीताल और कालाढूंगी में ही बीता।

वे करीब चौबीस साल तक नगर पालिका, नैनीताल में सदस्य, उपाध्यक्ष और वरिष्ठ उपाध्यक्ष रहे।जिम कॉर्बेट भारत भूमि और भारत के गरीबों से बेपनाह मोहब्बत करते थे। जिम कॉर्बेट ने अपनी बहुचर्चित किताब “माय इंडिया” हिंदुस्तान के गरीबों को समर्पित की है।

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जिम कॉर्बेट ने “माय इंडिया”की प्रस्तावना में लिखा है:-“जिस हिंदुस्तान को मैं जानता हूँ, उसमें चालीस करोड़ लोग रहते हैं, जिनमें से नब्बे फीसदी लोग सीधे-सादे, ईमानदार,बहादुर, वफादार और मेहनती हैं,जिनकी रोजाना की इबादत-ऊपर वाले से और जो भी सरकार गद्दी पर हो-से यही रहती है कि उनकी जान-माल की सलामती बनी रहे और वो अपनी मेहनत का फल अच्छे से खा सकें।

हिंदुस्तान के ये वो लोग हैं, जो निपट गरीब हैं और जिन्हें अक्सर ‘हिंदुस्तान के करोड़ों अधपेटे’ कहा जाता है। ये वे लोग हैं जिनके बीच मैं रहा हूँ और जिनसे मैं मोहब्बत करता हूँ। यही वो लोग हैं जिनके बारे में बताने की कोशिश मैं इस किताब के पन्नों में करूँगा,और यह किताब मैं अपने उन्हीं दोस्तों के नाम करता हूँ।

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हिंदुस्तान के गरीबों के नाम।”जिम कार्बेट और उनकी प्रिय बहन मारग्रेट विनिफर्ड ‘मैगी’ ने 30 नवंबर,1947 को भारी मन से नैनीताल को हमेशा के लिए अलविदा कहा। वे नैनीताल कभी नहीं छोड़ना चाहते थे।

नैनीताल छोड़ते समय के अपनी मनोदशा के बारे में अपने एक मित्र को लिखे गए पत्र में मैगी ने कहा था:-“जिस सुबह हम निकलने वाले थे,सुबह सबसे पहले हमने(जिम कार्बेट और मैगी) तालाब को देखा, सुबह की रोशनी में तालाब बेहद खूबसूरत दिख रहा था।

तालाब की इस खूबसूरती को शब्दों में व्यक्त कर पाना असंभव है। हमारे नौकरों ने हमारा जाना आसान नहीं किया, वे रो रहे थे। उनके आंसू गालों से नीचे को लुढ़क रहे थे।जब हम पहाड़ी से नीचे उतर रहे थे, हमने मुड़कर उस घर (गर्नी हाउस)को देखा। जिस घर को अब हम दुबारा कभी नहीं देख पाएंगे।”

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