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विभाग काम किए नहीं गले पड़ी जनप्रतिनिधि और प्रशासन के! वो बोले बजट समय पर दो! पढ़ें प्रधान सम्पादक*जीवन जोशी* की धरातल से आपदा प्रबंधन और बाढ़ की हालत पर एक नजर…*नैनीताल*

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नैनीताल जनपद में तीन दिन की बरसात ने जो कोहराम मचाया उससे यह बात सामने आती है कि विभागों ने समय पर जागने का काम गंभीरता से नहीं किया जिसके परिणाम सामने आ चुके हैं। अब गले गले प्रशासन की आ रही है!

जिलाधिकारी की पहल पर धरातल पर विभागों ने तेजी से काम नहीं किया कुछ जंग लगे लोग पूरे किए धरे पर पानी फेर देते हैं! हाथ पकड़ने वाले कम गिराने के लिए तानाबाना बनने वाले अधिक होने से भी विभागों में आपसी तालमेल ठीक नहीं दिखता जो जिला प्रशासन के लिए बड़ी समस्या नज़र आती है कहने का तात्पर्य ये है की तालमेल बनाकर जो किया जाना चाहिए वह नहीं हो रहा है!

आपदा का कारण सबसे बड़ा नदी नालों का चोक होना है! कहीं कब्जा कर लिया नालों पर तो कहीं इमारत खड़ी हो गई! तमाम नदी नालों पर कब्जा किया गया है जांच की जाए तो सामने आ जाएगा!

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हल्द्वानी हो या नैनीताल के अन्य तहसील क्षेत्र हर जगह नदी नालों पर कब्जा किया गया है! इधर लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में बिंदुखत्ता राजनीतिक खेला हो गया के चक्कर में उजड़ता नजर आ रहा है इसका कारण बचाव के लिए समय पर विभागों ने कोई इंतजाम नहीं किया!

आज *बिंदुखत्त* उजड़ रहा है बचाव के लिए समय से संबंधित विभागों ने काम किया होता तो स्थानीय जनप्रतिनिधि और प्रशासन तीन परिवारों से घर खाली करो कहने न जाते ! विभाग काम करते नहीं प्रशासन के गले समस्या खड़ी हो जाती है! फिर विभाग गायब!

जनप्रतिनिधि अपना जी भर प्रयास करते हैं! कोई नेता अपना फील्ड खराब नहीं करना चाहता! लेकिन विभाग . जनप्रतिनिधि तथा जिला प्रशासन तीनों मिलकर समय के अनुसार कार्य करें तो समस्या टेबल पर निपट सकती है! फोन के मैसेज पर आज दुनिया चल पड़ी है तब दिक्कत कहां है ? भ्रष्टाचार की बू आती है ईमानदार अधिकारी की कलम पर काम न होना बड़ी चुनौती है!

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विभागों को समय से बजट मिले और तेजी से कंप्यूटर की तरह काम किया जाए धरातल पर तो आपदा प्रबंधन को बारह महीने तैयारी में न रहना पड़े ऐसा भी समय आ सकता है! आपदा प्रबंधन टीम को बारह महीने सक्रिय रखा जाए इनका काम आपदा को लाने में जुटे लोगो को रोकना हो और नदी नालों की चौकीदारी भी हो!

हिमालीय क्षेत्र होने से लोगों ने पहाड़ों को अपनी पसंद बना लिया पूरा पहाड़ जिसके पक्का होने या मजबूत होने का प्रमाण पत्र जारी नहीं है फिर भी सरकार को गच्चा देकर अपनी मनमानी के चलते पहाड़ों पर अंधा धुंध बड़ी चुनौती भरे स्थानों पर कोठियों की संख्या दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ना! मशीनों से पहाड़ों को ब्लास्ट करने जैसे दंश पहाड सहेगा ?

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