
बिंदुखत्ता। नैनीताल और उधमसिंह नगर की सीमा पर बसा यह गांव मिनी उत्तराखंड लगता है क्योंकि इसमें राज्य के हर जनपद के अलावा कुछ बाहरी प्रदेश के लोग भी हैं जो उस समय भूमि आंदोलन में नगण्य थे!
आज इस विशाल आबादी को राजस्व गांव घोषित्व करवाने के लिए दर दर भटकना पड़ रहा है जबकि कानूनी रूप से वन अधिकार अधिनियम 2006 के तहत इसे राजस्व गांव घोषित्व किया जा सकता है!
पूर्व में पंडित स्व.नारायण दत्त तिवारी ने इसे वन गांव घोषित्व करने की कोशिश की थी जिसका वामपंथी दल ने विरोध किया और वन गांव का काम रुक गया।
इसके बाद अविभाजित उत्तर प्रदेश सरकार में राजस्व मंत्री रहे बाबू लाल गुप्ता ने इस क्षेत्र की तीन माह तक जिलाधिकारी आराधना जौहरी के कार्यकाल में उप जिलाधिकारी रही शकुंतला गौतम की देख रेख में तीन माह तक राजस्व विभाग ने चालीस कर्मचारी लगाकर सर्वे की थी।
इसके बाद राज्य आंदोलन शुरू हो गया और राजस्व विभाग द्वारा जो सर्वे की गई उसका कुछ अता पता नहीं चला और सब राज्य आंदोलन में शामिल हो गए! लोगों को उम्मीद थी राज्य मिल जाएगा तो सब समस्या हल हो जाएगी!
इसके बाद 2000 सन में राज्य बना तो पंडित नारायण दत्त तिवारी सरकार ने बिंदुखत्ता की सूरत बदल दी और ऐतिहासिक विकास हुआ!
हरीश रावत सरकार में इसे पूर्व कैबिनेट मंत्री हरीश चंद्र दुर्गापाल ने नगर पालिका परिषद बना दिया था! दो करोड़ बजट भी आया और फिर वामपंथ ने विरोध जताया तो भाजपा भी इसमें शामिल हो गई थी! तब भाजपा ने जनता से वादा किया था नगर पालिका परिषद वापस करके राजस्व गांव घोषित्व किया जाएगा!
लेकिन आज तक राजस्व गांव घोषित्व करने में हो रही देरी जनता को ठगा सा महसूस होने लगा है! जनता को उम्मीद है विधायक डॉक्टर मोहन बिष्ट और सीएम पुष्कर धामी बिंदुखत्ता को चुनाव से पूर्व सौगात देंगे।
राजस्व गांव की उम्मीद में बैठी जनता लगातार भाजपा का विधायक इस क्षेत्र से प्रतिनिधित्व करने के लिए भेज रही है! भाजपा के समर्थकों का गांव जो पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को हराकर भाजपा का विधायक भेजता है उसे राजस्व गांव से वंचित रखा जाना कितना न्याय संगत होगा समझा जा सकता है।
अशोक चक्र विजेता इस धरती के सपूत हैं उसके बावजूद आज तक बिंदुखत्ता को इंसाफ नहीं मिला।
















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