अल्मोड़ा। उत्तराखंड में विकास हो ये सबकी इच्छा है लेकिन कई जगह विकास को लोग नहीं चाहते जिस कारण कई सड़कें आज भी आधी अधूरी पड़ी हैं। विकास यात्रा पर निकले नेता तब हार जाते हैं जब गांव वाले ही विकास में रोड़ा बन जाते हैं। दर्जनों सड़कें आज भी विकास विरोधियों के कारण आधी अधूरी पड़ी हैं। कई जगह देखा गया है कि सियासत बाज सीधे साधे लोगों को भड़का कर विकास को रुकवा देते हैं फिर विकास नहीं होने का हल्ला मचाते हैं। कई जगह सड़कें रुकी हैं तो कई जगह बिजली के पोल नहीं लग पाते हैं जो उत्तराखंड के लिए चिंता का विषय है। बुजुर्गों को भड़का कर विकास रोकना विपक्षी दलों का फैशन हो गया है। जिसकी सरकार नहीं बनी या जो चुनाव हार जाते हैं वह जनता की भड़का देते हैं और होने वाले काम भी रुक जाते हैं। जबकि विकास का विरोध करना अलोकतांत्रिक कदम कहा जा सकता है। लोगों के विरोध के कारण बाधित होने वाले काम भविष्य के लिए दुःख का कारण बन जाते हैं। मर्यादित विरोध तो उचित है लेकिन जिद वाला जबरदस्ती का विरोध विकास विरोधी अभियान है। जनता को चाहिए कि वह शुद्ध विरोध करे और उसका हल भी निकलवाए जिससे विकास की गंगा हर सरकार में बहती रहे।
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