नई दिल्ली। सरकार अग्निपथ योजना को मंजूरी दे चुकी है और भर्ती प्रक्रिया शुरू हो गई है तो वहीं युवा विरोध में डटे हुए हैं। सरकार का पक्ष है कि वह सेना को आधुनिक युग में ले जा रही है जिससे सेना में बदलाव आएगा। सरकार की इस योजना का देश व्यापी विरोध भी हो रहा है जिसमें विपक्ष भी आंदोलन को सींचने का काम बखूबी कर रहा है। सवाल उठ रहा है आंखिर होगा क्या ? युवाओं के बेहतर भविष्य के लिए क्या उचित होगा और क्या अनुचित इस पर भी चिंतन किया जाना जरूरी हो गया है। सवाल उठता है कि युवा इसका विरोध क्यों कर रहा है ? दो साल से सेना की भर्ती नहीं हुई जो कोशिश में रात दिन लगे थे उन युवाओं को लगा कि अब उनकी मेहनत बेकार हो गई है और परीक्षा का परिणाम नहीं निकला। सेना में अपना भविष्य बनाने का सपना देख रहे युवा इस योजना से आहत हुए हैं। देश में रोजगार के आंकड़ों पर नजर रखने वाले एक्सपर्ट कहते हैं कि पांच छः साल से रोजगार का आंकड़ा बहुत नीचे आ गया है। विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार 5.1 करोड़ से घटकर 2.7 करोड़ पहुंच गया है। सरकार की कोशिसों के बावजूद रोजगार मिलने की जगह कम हुआ है। युवाओं में एक बात घर कर गई है कि उनको चार साल बाद दरबारी की पहचान के सिवा कुछ नहीं मिलेगा। कुछ बड़बोले बयानों ने भी युवाओं को आंदोलित किया है। कोई कह रहा है चार साल बाद ऑफिस में कर्मचारी रख लेंगे तो कोई कह रहा है अन्य विभागों में आरक्षण देंगे। युवाओं को ये समझ नहीं आ रहा है कि चार साल की सेवा के बाद वह क्या करेंगे। बहुसंख्यक कामकाजी आबादी वाले भारत जैसे देश में अर्थव्यवस्था के दो बड़े क्षेत्रों में करीब चार करोड़ रोजगार कम होने से युवाओं में हताशा घर कर गई है। सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद रोजगार के आंकड़ों पर नजर डालें तो रोजगार के अवसर कम ही हुए हैं। इसके साथ ही सबसे बड़ा भय जो युवाओं के दिल में बैठ गया है वह है चार साल बाद वह ओवरेज होकर जब घर आयेंगे तो फिर क्या करेंगे। भारत में मेन्यूफेक्चरिंग, सार्वजनिक उपक्रम के क्षेत्र में जो मंदी देखने को मिल रही है उससे भी युवा के मन में निराशा घर कर गई है। चीन के आंकड़े बताते हैं कि कामकाजी आबादी के हिसाब से वह भारत से पीछे है लेकिन वहां मेन्यूफेक्चरिंग में 11 करोड़ सेअधिक लोग रोजगार कर रहे हैं जो भारत से चार गुना अधिक है। भारत को इस दिशा में मजबूती के साथ काम करना होगा और मैंन्यूफैक्चरिंग के क्षेत्र में जोरशोर से काम करने की आवश्यकता होगी। छोटी पूंजी से कारोबार करने में भ्रष्टाचार, लालफीताशाही बाधक बनती है जिसे कड़ाई के साथ रोकना होगा। छोटे उद्योग लगते हैं तो उनके माल को बाजार नहीं मिल पाता इसका कारण चीन से आने वाला सस्ता उत्पाद है। भारत की टार्च सौ रुपए में तैयार होती है तो चीन दस रुपए में टार्च के साथ लाइटर भी दे देता है फिर सौ रुपए की टार्च कोई क्यों खरीदेगा। भारत में बड़ा बाजार है लेकिन उत्पादित समान की लागत अधिक होने से वह बिकता नहीं लोग सस्ता और अच्छा माल पसंद करते हैं। उद्योग धीरे धीरे बंद होते जा रहे हैं इसका कारण भी चीन से आने वाला सस्ता समान है। भारत सरकार को चाहिए कि वह सस्ता और अच्छा सामान चीन के सामान के बराबर मूल्य में कैसे तैयार करे और कैसे अपने देश में अपने देश का ही माल बिके ये कदम रोजगार की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। आज घट रहे रोजगार के कारण ही युवा पीढ़ी निराश होकर आत्म विश्वास खो रही है। पढ़ लिख कर क्या करें ये भी एक विषय चिंता में डाल रहा है। रोजगार परक शिक्षा ना मिलना भी एक बड़ा कारण है। सरकार को रोजगार की दिशा में गम्भीरता पूर्वक विचार करना होगा कि कैसे अपने देश में अपना ही उत्पाद बिक सके। चीन के सस्ते उत्पाद की तरह अपने देश में भी सस्ता उत्पाद तैयार करना होगा जिससे अपने देश में रोजगार बढ़ सके। युवाओं को पीटकर, डराकर उनकी निराशा को खत्म नहीं किया जा सकता। बच्चों को जो चाहिए वो उनको देना होगा क्योंकि बचपन जिद्दी होता है उसे जो चाहिए वो उसे देना ही होगा, बच्चों को समझाने से ही समझ आती है। आज का युवा पढ़ लिख कर मजदूरी नहीं करना चाहता उसे उसके लायक काम देना भी सरकार की नैतिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। आज बच्चे अग्निपथ का विरोध नहीं अपने भविष्य की चिंता का इजहार कर रहे हैं। जिनके लिए हम सब कुछ कर रहे हैं वह हमारी बात नहीं मान रहे तो उस पर विचार किया जाना चाहिए कि बच्चे की चिंता का मूल कारण क्या है। राजनीतिक दलों को भी चाहिए कि वह बच्चों को भड़काना बंद करें। बच्चे स्कूल से जब पढ़ कर बाहर आते हैं तो उनका भी सपना होता है। कहा है किसी ने खतरनाक नहीं है आदमी का मर जाना सबसे खतरनाक होता है उसके सपनों का मर जाना! इसलिए बच्चों के दर्द को समझना होगा और हल खोजना होगा।
- जीवन जोशी* सम्पादक दूरगामी नयन
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