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*Big breking news*तख्ता पलट की तरफ यूनुस सरकार! पढ़ें पाकिस्तान जैसी मुसीबत में फंसता बांग्लादेश…(*एक्सक्लूसिव रिपोर्ट*)

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ढाका। (प्रधान संपादक जीवन जोशी की कलम से)पड़ोसी देश बांग्लादेश की अंतरिम सरकार जिसको देश में स्थिरता लाने और निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी मिली थी, अब खुद अस्थिरता का शिकार होती दिखाई दे रही है।

इसका संकेत विदेश सचिव मोहम्मद जाशिम उद्दीन को केवल 8 महीने में हटाए जाने की तैयारी कह सकते हैं, यह सिर्फ प्रशासनिक बदलाव नहीं है बल्कि इसके पीछे कई गहरे राजनीतिक संकेत छुपे नजर आते हैं।

क्या कारण है कि आंतरिक सत्ता संघर्ष मुहम्मद यूनुस जो वर्तमान में सरकार के प्रमुख सलाहकार हैं और विदेश मामलों के सलाहकार तौहीद हुसैन दोनों के साथ जाशिम उद्दीन के संबंध तनावपूर्ण बताए जाते हैं ।

जानकार सूत्रों की मानें तो महत्वपूर्ण विदेश नीति फैसलों में जाशिम उद्दीन को नजरअंदाज किया जा रहा था।

जाशिम उद्दीन ने इस योजना का विरोध किया क्योंकि उनका मानना है कि इससे बांग्लादेश की सीमाओं पर सुरक्षा खतरा बढ़ेगा व देश की संप्रभुता पर आंच ला सकता है।

इधर बताया जाता है कि सेना भी इस नीति से असहमत है, जिससे यह साफ होता है कि उद्दीन और सेना की सोच एक जैसी है।

सूत्रों की मानें तो सेना और यूनुस के बीच अविश्वास बढ़ता जा रहा है, सेना प्रमुख जनरल वकार-उज-जमान यूनुस की विदेश नीति जिसमें म्यांमार के प्रति नरम रुख से नाखुश नजर आते हैं।

सूत्रों के अनुसार सेना ने राजधानी ढाका में अपनी मौजूदगी बढ़ा दी है जिससे तख्तापलट की अटकलें तेज हो गई हैं।

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प्रोथोम अलो जैसी प्रमुख बंगाली मीडिया रिपोर्टों में खुलासा हुआ कि विदेश सचिव का पद होते हुए भी टोक्यो में सचिव-स्तरीय बैठक की अगुवाई किसी और ने की थी।

बताया जाता है बीते 12 दिनों में जाशिम उद्दीन किसी भी अंतर-मंत्रालयी बैठक में नहीं देखे गए हैं जो उनकी नाराजगी दर्शाता है।

सूत्रों ने यह भी दावा करते कहा कि वे अब पारंपरिक कार्यभार से लगभग बाहर हो चुके हैं और प्रतीक्षा में हैं कि उन्हें औपचारिक रूप से हटाया जाए।

इधर दूसरी तरफ संभावित बदलाव अमेरिका में बांग्लादेश के राजदूत असद आलम सियाम को नया विदेश सचिव बनाए जाने की चर्चा तेजी से हो रही है।

कहा जा रहा है कि 20 जून तक वे पदभार संभाल ग्रहण कर सकते हैं। तब तक रुहुल आलम सिद्दीकी कार्यवाहक सचिव बने रहेंगे।

संभावना जताई जा रही है कि जाशिम उद्दीन को किसी देश में राजदूत या विदेश सेवा अकादमी के रेक्टर के रूप में नियुक्त किया जा सकता है।

अब मुहम्मद यूनुस के सामने मुख्य चुनौतियां हैं सेना का अविश्वास तख्तापलट की आशंका और सरकार और सेना में नीतिगत बढ़ रही दरारें।

देश की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल उठाए जा रहे हैं कि अंतरिम सरकार से जनता को अपेक्षा थी कि वह जल्द निष्पक्ष चुनाव कराएगी।

जनमत के अनुसार इसमें कोई ठोस प्रगति नहीं दिख रही है हाल में घटित कई घटनाओं ने देश की धर्मनिरपेक्ष छवि पर सवाल भी खड़े किए हैं।

लगातार अल्पसंख्यकों पर हमले और कट्टरपंथ का उभार देखने को मिला है, भारत और अन्य पड़ोसियों से रिश्तों में गिरावट साफ दिखाई देती है।

भारत जो हमेशा से बांग्लादेश का रणनीतिक साझेदार रहा है यूनुस की नीति से अब भारत भी असहज नजर आ रहा है।

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सूत्रों की मानें तो यूनुस सरकार सेना और आम जनता दोनों के आक्रोश का हो सकती है शिकार। अब सवाल यह उठता है कि यूनुस सरकार जल्दबाजी में विवादास्पद नीतियां लागू करती है तो यह सेना और आम जनता दोनों के आक्रोश का कारण बन सकती हैं।

और यही हाल रहा और स्थिति नहीं संभली तो सिविल तथा सैन्य टकराव एक बड़े राजनीतिक संकट का रूप ले सकता है।

लोगों में जो चर्चा चल रही है उसके अनुसार बांग्लादेश में विदेश सचिव को 8 महीने में ही हटाया जाना सामान्य बात नहीं है।

यह सत्ता के भीतर चल रही गहरी राजनीतिक खींचतान और असहमति का नमूना कहा जा सकता है। मुहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार अब बेहद नाजुक मोड़ पर खड़ी नजर आ रही है।

यूनुस सरकार से एक ओर सेना नाराज है वहीं दूसरी ओर कूटनीतिक विफलता, देश के भीतर कानून-व्यवस्था की चुनौती खड़ी हो गई है।

बांग्लादेश के राजनीतिक जानकार कहते हैं कि यदि समय रहते समाधान नहीं खोजा गया तो बांग्लादेश एक और राजनीतिक अस्थिरता और लोकतांत्रिक संकट के दौर में प्रवेश कर सकता है जिससे देश गर्त की तरफ बढ़ेगा और अपने बुने जाल में खुद फंस जाएगा।

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