

उत्तराखंड : * प्रधान संपादक* जीवन जोशी* की कलम से…* आसमानी मानसून की विदाई और राजनीतिक मानसून का आगमन* जिसकी अवधि 2027 के चुनाव तक रहेगी! कहीं बिजली गिरेगी तो कहीं बादल फटने के समाचार मिलेंगे!
राजनीतिक गलियारों में मानसून आने की चर्चा होने लगी है तो कहीं टिकट पक्का करने की होड लगने लगी है!
पार्ट टू बड़ी पार्टियों ने कह दिया है जिनका आधार जमीन पर अच्छा होगा उनको उड़ने वाले जहाज का टिकट! मतलब भाजपा से टिकट मिलेगा! यह किसी के लिए व्यंग्य हो सकता है लेकिन मेरी कलम का लिखने का अंदाज कहो या इसे कलम की मारक क्षमता कहो वह दूरगामी है! इसीलिए नाम दूरगामी नयन है!
अब उहापोह की स्थिति में राजनीतिक दलों के खेवनहार हैं कि किस दल से टिकट लिया जाए! भाजपा ने साफ कर दिया है जिसकी सर्वे रिपोर्ट ठीक आएगी उसे ही टिकट मिलेगा!
इसलिए आजकल सभी धरातल पर नजर आने लगे हैं और आना भी चाहिए जनसेवक अपनी भूमिका में खरे उतरे तो जनता उनको कभी निराश नहीं करती और जो नेता अपने घेरे से बाहर मतलब चश्मे से बाहर हटकर नहीं देखता उसे भी जनता नकार देती है!
इसका एक उदाहरण नहीं है कई बार चरितार्थ होते देखा है! राजनीतिक दलों में आने वाले चुनाव को लेकर बैठक चर्चा शुरू हो गई है! और अपना धरातल तैयार करने में सक्षम नेता जुट गए हैं!
कई स्थानों पर कुछ विधायकों का पार्टी का ही एक खेमा पीछा कर रहा है इससे इन विधायकों को धरातल पर उतरना होगा! टिकट तभी मिल सकता है जब सर्वे रिपोर्ट ठीक जाएगी!
इसलिए जनता से मोबाइल की तरह जो टच रहेगा वही नेता स्क्रीन टच नेता होगा! क्योंकि आजकल स्क्रीन टच का जमाना है! फोन की स्क्रीन टच कीजिए सब कुछ ऑन लाइन हाजिर हो जाता है!
इसलिए नेता को अपनी क्वालिटी बदलनी होगी! जिसे विधायक बनना है या बनना चाहता है वह हमारे संस्थान में निःशुल्क प्रशिक्षण प्राप्त कर सकता है! ऑन लाइन सलाह भी दी जाती है! हम चाहते हैं संस्कार वान समाज हो संस्कारवान नेता हो तो देश विश्व गुरु अपने आप हो जाएगा!
सीएम पुष्कर धामी सरकार वापस सरकार बनाएगी ऐसा प्रतीत होता है! इसलिए होगा कांग्रेस और क्षेत्रीय दल सरकार के खिलाफ एकजुट होकर आपस में भिड़ जाएंगे!
ये एकजुट जब तक नहीं होंगे भाजपा विजई होते रहेगी! स्थानीय दल की मारक क्षमता बढ़ती तो मामला रोचक होता ऐसा प्रतीत हो रहा है लेकिन शब्द जो है उसकी भी मारक क्षमता बढ़ती जा रही है!
क्योंकि वामपंथी दल कभी एकजुट होकर सफलता की मंजिल नहीं छू सके! राज्य बने नए एकसाथ कई 2000 में सब जगह स्थानीय दलों की सरकारें बनी उत्तराखंड में कांग्रेस और भाजपा की सरकारें बनी!
मतलब जिनके चंगुल से बचने के लिए राज्य मांगा था उनकी ही सरकारें बनी और स्थानीय लोगों का जमावड़ा सब राष्ट्रीय दलों की राजनीतिक कलाकारी के चलते राजनीतिक आपदा प्रबंधन से दलदल में समा गया!
मतलब सत्ता का ख्वाब आंसुओं में समा गया! विपिन त्रिपाठी तक तीसरी ताकत का कुछ असर दिखता था उसके बाद तीसरी ताकतें बिखरती चली गई जो इस राज्य का सबसे बड़ा दुःख का पहलु भी प्रतीत होता है! जल जंगल जमीन से रिश्ता टूटना भी एक दुखद पहलू है!
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