
नैनीताल। चैत्र मास प्रारंभ होते ही अध्यात्म से जुड़े कई पर्व आ जाते हैं इस माह उत्तराखंड में बेटी और बहिन को भिटोली देने की परंपरा है। चैत्र मास प्रारंभ होते ही बेटी और बहिन अपने मायके वालों के आने का बेसब्री से इंतजार करती हैं।
चैत्र मास प्रारंभ होते ही मायके से एक सदस्य बहिन, बेटी के घर जाता है और स्वादिष्ट पकवान बनाकर, मिठाई, फल, सुंदर एक जोड़ी वस्त्र लेकर मायके से रवाना होता है। बहिन, बेटी के घर जाकर उसकी कुशल पूछने के बाद उसे भिटोली के साथ दक्षिणा देकर वापस आता है।
भिटोली जैसे ही बहिन, बेटी को मिली वह पास, पड़ोस में मिठाई देने जाती है कि आज उसकी भिटोली आई है। भिटोली पाकर बहिन बेटी गद गद होती है।
सदियों से चली आ रही भिटोली के पीछे का सच यह है कि पहले दूर दूर विवाह होते थे, गरीबी के चलते लोग साल भर तक अपनी बहिन, बेटी की कुशल नहीं जान पाते थे इसलिए साल में चैत्र मास का नियम बनाया गया और तब से आज तक भिटोली की परंपरा चली आ रही है।
बहिन बेटी इस भिटोली का बेसब्री के साथ इंतजार करती है, जब तक चैत्र मास रहता है हर बेटी, बहिन अपने मायके वालों का इंतजार करती है। आज कुछ लोग इसे पैसे भेजकर भी बहिन बेटी को भिटोली परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं जबकि नियम है कि भिटोली देने मायके से एक सदस्य को लड़की, बहिन के घर जाना चाहिए इससे कुशल पूछने का अवसर भी प्रदान होता है और ससुराल में रह रही बहिन बेटी को भरोसा रहता है कि उसके मायके वाले उसे भूले नहीं हैं।
















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