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जब एक किताब चलती थी सालों साल! परिवार, पड़ोसी, रिश्तेदार सब एक किताब के रहते थे भरोसे! पढ़ें संपादक जीवन जोशी की कलम से…

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नैनीताल। आज अनायास ही लिखने का दिल कर गया जब एक गरीब अभिभावक अपने बच्चों की हर साल बदलती किताबों को लेकर अपना दर्द साझा करने मेरे कार्यालय आया! आज हर अभिभावक का दर्द है कि हर साल किताबें बदली होती हैं, ड्रेस बदली होती हैं!

पहले जब हम लोग पढ़ाई करते थे तो पूरा परिवार, पड़ोसी, रिश्तेदार एक ही किताब से काम चला लिया करते थे! कई बार किताब को जिल्दसाज के पास होकर गुजरना पढ़ता था! मांग मांग कर एक किताब दस साल बाद भी पुरानी नहीं होती थी!

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आज वह समय नहीं रहा जब लोग पुरानी किताब मांगने किसी के घर जाते हों! पहले किताब देना महादान समझा जाता था और लोग किताब की बहुत कदर भी करते थे!

समय बदला सीबीएससी ने उस परंपरा को तहस नहस कर दिया! वर्तमान में केंद्र सरकार फिर से पुरानी परिपाटी पर शिक्षा विभाग को लाने का प्रयास कर रही ही जिसकी देश को जरूरत महसूस हो रही है।

भारतीय शिक्षा में भारत का दर्शन होना चाहिए! भारत के इतिहास को ईमानदारी से परोसा जाना चाहिए! विदेशियों का गुणगान भारतीय शिक्षा जगत से बाहर किया जाना चाहिए! पूरे देश में एक समान शिक्षा की दरकार है जिससे अभिभावक से हो रही हर साल लूट को रोका जा सके! एक किताब कम से कम पांच साल तक तो चले जिससे अभिभावक एक जोड़ी किताब से अपने हर बच्चे को शिक्षा दिला सके!

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भारत सरकार को चाहिए कि वह जनता के सपनों को साकार करने वाले फैसले ले जिससे सरकार के कार्य से आम आदमी खुश हो सके और भारत की विभूतियों को नए भारत में जगह मिल सके! बदलते भारत में शिक्षा विभाग को भी बदलने जन अनुरूप शिक्षा की दरकार है।

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