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मानसून सत्र और उत्तराखंड! पढ़ें आज की संपादकीय…

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जीवन की कलम से

उत्तराखंड में मानसून दस्तक दे चुका है मानसून के आते ही जगह-जगह सड़कों पर मलवा आना शुरू हो गया है, जबकि चार धाम यात्रा चल रही है और जल्द कांवड़ यात्रा प्रारंभ होने जा रही है। हर साल वर्षा ऋतु में उत्तराखंड में दैवी आपदा का दंश लोगों के लिए खासा मुसीबत खड़ा करता आया है।

बताते चलें उत्तराखंड में दैवीय आपदा प्रबंधन टीम हर साल सक्रिय रहती है इसके बावजूद अनहोनी को रोका नहीं जा सकता। उत्तराखंड सरकार हर साल आपदा प्रबंधन में बेहिसाब खर्चों का सामना न करती तो ये राज्य देश का सबसे सुंदर राज्य होता।

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पहाड़ी राज्य होने के कारण भूस्खलन की घटना हाल के कुछ वर्षों में बढ़ गई हैं जिसके अध्ययन से ज्ञात होता है कि प्रकृति से छेड़ छाड़ और यम नियम का पालन न करने से आपदा में लगातार वृद्धि होती जा रही है।

पूरे प्रदेश में करीब चार पांच सौ के करीब गांव ऐसे हैं जिन्हें खतरा है। इसके अलावा बरसात के साथ ही दूरस्थ क्षेत्रों में खाद्यान्न संकट भी उत्पन्न हो जाता है। कई गांव नदी नालों के आ जाने से नमक के लिए तक तड़फ जाते हैं।

राज्य सरकार का हमेशा प्रयास रहा है कि सबको खाद्यान्न उपलब्ध हो लेकिन इसके बावजूद लोगों तक बरसात में जरूरी सामान पहुंचा पाना कठिन हो जाता है। दैवीय आपदा प्रबंधन टीम हर साल गठित होती है जो इस बार भी गठित की गई है।

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नदी किनारे बसे गांव भी मानसून सत्र में खतरे का सामना करते हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले जानकर कहते हैं अवैज्ञानिक तरीके से पहाड़ों का कटान और खनन इसके लिए जिम्मेदार है। लोगों का कहना है पहाड़ों की जड़ों को खोदा जा रहा है और खड़िया के लिए पहाड़ की नाभी में सुरंग बनाई जा रही है जो विनाश लीला को खुला आमंत्रण है।

उत्तराखंड में मालपा जैसी घटना को भूलना बहुत बड़ी भूल होगी, इसलिए सरकार और समाज सेवी संस्थाएं आपदा प्रबंधन के साथ ही कारणों पर भी चिंतन करें। उत्तराखंड की कमजोर पहाड़ियों पर कंक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं जिससे पहाड़ियां वजन न सह पाने के कारण खिसक रही हैं।

संपादक

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