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रचनाकार के सपनों की दौलत कमाना भूल गया मानव! पढ़ें संपादक के अपने विचार…

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नैनीताल। आज अनायास ही मन कर बैठा कि क्यों न कुछ नई बात को पटल पर रखूं! विषय है मानव जीवन क्यों मिला ? मेरे ज्ञान के अनुसार सृष्टि के रचनाकार ने जब रचना की तब उसने बहुत सुंदर सपना देखा था और वह रचनाकार का विश्वास था! विश्वास के सहारे रचनाकार रचना करते गए, हर तरह की रचना की गई!

रचनाकार ने मानव को अपना रूप दिया और कहा जा धरती पर जाकर कर्म करना और कर्म से कमाई दौलत लाकर मुझे देना! इसके बाद रचनाकार अपने धाम रवाना हो गए!

अब इंसान दौलत का मतलब क्या समझता है ? क्या कमा रहा है मानव ये तो जो कमा रहा है वही अपने दिल से पूछे कि वह किस्स की दौलत एकत्र कर रहा है! किसने कितने कर्मों की गठरी बांधी है और कितने कर्म प्रभु के पसंदीदा किए जा रहे हैं ये तो कर्मदाता को ही आत्म चिंतन करना होगा!

आज जिस गति से समाज भाग रहा है उसमें कर्म कम अधर्म अधिक का पथ संचलन नजर आता है! नैतिक मूल्यों को बहुत भारी नुकसान होने का तात्पर्य अधर्म पथ की कई सखी सहेली बनकर मार्ग दर्शन में विघटन को प्रदर्शित करती है!

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आज जरूरत है रचनाकार के नियम के अनुसार चलने की! प्रकृति आज भी ज्ञान बांट रही है लेकिन मानव कर्म में जुटा है ज्ञान को वह बेकार की बात कहने से तक नहीं हिचकता!

अधर्म का बोलबाला न हो सके सनातन धर्म ही एक मात्र मार्ग है जो रचनाकार तक हमें मय दौलत पहुंचा सकता है! अपने से ही जब कुछ प्रारंभ होता है तो उसका एहसास होता है और ज्ञान मिलना प्रारंभ होता है!

आज मानव दानव दैत्य जैसे कर्म की गठरी बांधने से भी नहीं डरता तो रचनाकार क्या करेगा ? किसी का मर जाना उतना खतरनाक नहीं होता जितना सपनों का मर जाना होता है! सपनों को साकार होते देख जब मानव खुश होता है तब रचनाकार के दिल पर क्या गुजरती होगी जब उसका भेजा मजदूर उसका कहना न मानता हो! रचनाकार के सपनों को साकार करने के लिए ही मानव जीवन मिला है लेकिन मानव अपने कर्तव्य पथ से भटक रहा है!

भगवान जिसे कहा जाता है वही रचनाकार है! उसने कहा है तू मेरा होकर रहना! जैसे ईमानदार चौकीदार मैनेजर को जेल भेज देता है! विश्वास पात्र बनकर रहेगा तो आंच नहीं आने दूंगा! जैसे तथा कथित नेता, मंत्री, अधिकारी धरती में अपने चेले से कहते हैं जा तू मेरा आदमी है! तब मानव का सीना कितना चौड़ा हो जाता है जब कोई नेता कंधे पर हाथ रख देता है वो भी भूल से! वह फोटो डीपी बन जाती है!

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अब रचनाकार की बात किसे याद है! सकारात्मक सोच रखो और रचनाकार की बात पर अमल किया गया तो दौलत बिखरी पड़ी है कमाने की देर है! उठाइए हाथ और पकड़िए उस गरीब का हाथ जिसे सहारे की जरूरत है! जिसे शिक्षा की जरूरत है! जिसे रोटी की जरूरत है! अनाथ के नाथ बनकर कमाई दौलत ही रचनाकार तक पहुंचेगी ये तय मान लीजिए!

एक दूसरे की मदद करेंगे तो निश्चित ही पाप की गठरी जलने लगेगी और धर्म पथ मिल जाने से रचनाकार के मार्ग का पता लग सकता है! श्रावण मास विदा हो रहा है इसलिए रचनाकार के सपने लिखने का ह्रदय से आदेश जारी हुआ जिसे पाठकों तक पहुंचा रहा हूं।

( लेखक: जीवन जोशी : सम्पादक )

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