आज की संपादकीय
जीवन की कलम से…
चुगान मजदूर बेहाल क्यों!
नदियों से चुगान सरकार की आय का एक प्रमुख श्रोत है लेकिन कुछ सालों से ये कारोबार नियमित व लाभकारी तरीके से संपादित नहीं हो पा रहा है जिससे सरकार व कारोबार में लगे लोग इससे वह लाभ अर्जित नहीं कर पा रहे हैं जो होना चाहिए था।
सीएम पुष्कर धामी सरकार ने इस बार खनन के नियम में कुछ परिवर्तन किया है तो उसका राजनीतिक कारणों के चलते विरोध होने लगा है।
बताते चलें पूर्व में नदियों से चुगान की अनुमति हर साल अक्टूबर से जून माह तक मिलती थी लेकिन एनजीटी सहित कई नियम लागू होने से अब नदी के चुगान का पैमाना बदल गया है।पहले वन विभाग नदियों से चुगान करवाता था और खुद नदियों का मालिक होता था, एक डीएफओ ने इसे जिला प्रशासन के हाथ दे दिया था।
अब डीएम इसका जिला स्तर पर मालिक होता है और वही खनन समिति का अध्यक्ष भी होता है।हर सरकार में खनन को लेकर नए नए नियम आते रहे हैं। इस साल पुरानी प्रणाली में कुछ बदलाव किए गए हैं जिससे कारोबारी और प्रशासन आमने सामने आ गए हैं।
सरकार को राजस्व का घाटा उठाना पड़ रहा है तो वहीं कारोबारी नई व्यवस्था को जन विरोधी करार देकर आंदोलन की धमकी दे रहे हैं।इससे मजदूर वर्ग के सामने भुखमरी की नोबत आ गई है।
मजदूर कहते हैं वह खनन के सहारे अपने आजीविका चलाते हैं लेकिन अब तक नदी नहीं खोली गई है।बताते चलें दशकों से हजारों लोग इस कारोबार से जुड़े हुए हैं जो आजकल हाथ पर हाथ रखकर बैठे हैं।
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