संपादकीय
विदा हुआ अंग्रेजी वर्ष २०२३ !
वर्ष २०२३ को विदाई देकर नूतन वर्ष २०२४ का जोरदार सुस्वागतम हुआ है और हर तरफ नए साल की बधाई दी जा रही है।जबकि हिन्दू नव वर्ष चैत्र मास में प्रारंभ होता है इसके बावजूद अंग्रेजियत कम नहीं होती दिख रही! पिताजी और माताजी शब्द आज भी लोगों के जेहन में नहीं बैठ रहा है! डेडी, मम्मी वाले संस्कार आज भी सनातन धर्म पर हावी हैं!
अंग्रेज चले गए लेकिन अपनी छाप जिस तरह छोड़ गए उस छाप को मिटाना अभी भी एक चुनौती समान है!सनातन धर्म और हिंदी पर अंग्रेजियत आज भी परंपरागत रूप से हावी है जो हिंदुस्तान के लिए आज भी गुलाम मानसिकता का मानो काला धब्बा है!
भारत आजाद हुआ! हर साल थर्टी फस्ट और हैप्पी न्यू ईयर मनाया जाता रहा! इसे ही परंपरा बना दिया गया! हिंदी पर लगातार वार होता गया और संस्कृत को मिटाने का लगातार प्रयास होता गया!इतने दमन हिंदी और संस्कृत पर हुए हैं लेकिन कभी किसी ने हिंदी और संस्कृत के दर्द को नहीं समझा!
संस्कृत भाषा साहित्य को मिटाने के लगातार प्रयास हुए लेकिन ब्रह्म समाज ने इस हमले के बावजूद भाषा को जीवंत बनाए रखने में जो योगदान दिया है उसे कभी भूला नहीं जा सकता!लोगों को आज अपनी मानसिकता बदलने की जरूरत है! हिंदी और संस्कृत के बिना भारत की कल्पना भी नहीं की जा सकती!
पाश्चात्य संस्कृति को बढ़ावा देने वाली शिक्षा को थोपा जाना, मोबाइल की दुनियां से शायद कुछ बदलाव आए ये कह पाना भी मुश्किल है!भारत की युवा पीढ़ी को संस्कारवान बनाने वाले समाचार पत्र भरपूर कोशिश में लगे रहते हैं इसके बावजूद अंग्रेजियत हावी है तो इसके लिए जिम्मेदार किसे मानेंगे।
















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