बिंदुखत्ता। आजादी के बाद से अब तक राजस्व गांव की मांग करते करते दो पीढियां हो गई हैं लेकिन आज तक एक लाख के करीब जनता की मांग अब तक मांग ही रह गई।
हर पांच साल में चुनाव होते हैं तब सांसद और विधायक प्रत्याशी इसे राजस्व गांव बनाने का जनता से वादा करते रहे हैं फिर चुनाव निपटने के बाद जनता की मांग नेता भूल जाते हैं।
उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव हो चुके हैं परन्तु मतगणना तक आचार संहिता लागू रहेगी। कुछ समय बाद नगरपालिका/ नगरपंचायत के चुनाव होने हैं जो कि लोकसभा चुनाव से पूर्व से ही पैंडिंग हैं, साथ ही उत्तराखंड में इसी वर्ष नवम्बर में ग्राम पंचायतों का कार्यकाल समाप्त होने के कारण वहां भी चुनावों का समय हो रहा है।
ऐसे में यदि जिले से वन अधिकार समिति द्वारा प्रेषित राजस्व ग्राम की पत्रावली 04 जून के बाद आगे बढ़ भी जाती है तो आचार संहिता के कारण शासन स्तर पर लम्बे ब्रेक लगने की पूर्ण संभावना है, यदि ग्राम पंचायतों के चुनावों से पूर्व यह कार्य पूरा हो जाता है तो आगामी पंचायत चुनाव बिन्दुखत्ता में भी हो सकते हैं।
यह सब सरकार, शासन और प्रशासन की मंशा पर निर्भर होगा।ऐसी भी आशंका है कि सुप्रीम कोर्ट संबंधी रोक हटने के बाद जो हाल शेष विद्युतीकरण कार्य का हुआ है या 2017 से जिस प्रकार मोहन नाथ गोस्वामी स्टेडियम की फाइल में कुछ काम नहीं हो पाया है, इसी प्रकार कहीं राजस्व ग्राम की फाइल का मामला भी लम्बा ना खिच जाए।
वर्तमान विधायक ने जनता से वादा किया है कि वह वनाधिकार कानून व्यवस्था के तहत बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनायेंगे! अपने जन्म दिन पर उन्होंने जनता से वादा किया था लेकिन अब दूसरी बार उनका जन्म दिन आने वाला है और अब तक राजस्व गांव का कहीं जिक्र तक नहीं हो रहा है।
लोगों का मत है कि सरकार चाहे तो आगामी ग्राम पंचायत चुनाव में बिंदुखत्ता में भी चुनाव करवा सकती है! लेकिन स्थानीय विधायक, सांसद पर निर्भर करता है कि वह किस तरह ये सब सरकार से करवा पाते हैं।
बिन्दुखत्ता की जनता अपने को ठगा सा महसूस कर रही है हर कोई एक दूसरे से पूछता है कि कब बनेगा राजस्व गांव!
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