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क्यों पूजा जाता है भूमिया देव को! जानें प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा की प्रासंगिकता

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भीमताल। यहां जगलियागांव के जंगल में स्थित भूमियाँ मंदिर में भक्तों ने आज भंडारे का आयोजन कर पूजा अर्चना की तथा भूमियाँ देवता मंदिर में सामूहिक रूप से धार्मिक रीति रिवाज से कार्यक्रम आयोजित किया जिसमें गांव के महिला पुरुषों ने समान रूप से धार्मिक रीति रिवाजों को मूर्त रुप दिया। गांव में हर साल भूमियां पूजन की उत्तराखंड में अतीत से वर्तमान तक परंपरा चली आ रही है। उत्तराखंड के अधिकतर लोग हर साल अपने गांव में बने भूमिया मंदिर में नए अनाज का भोग लगाते हैं। परंपरा है कि किसान खेत में होने वाली फसल को पहले भूमिया मंदिर में चढ़ाते हैं फिर उस अनाज का स्वयं भोग करते हैं। जब तक भूमिया मंदिर में नया अनाज नहीं चढ़ता तब तक गांव में नया अनाज नहीं खाते हैं। ये परंपरा का इतिहास बताता है कि ऐसा करने से भूमिया देव खेती की जानवरों पशु पक्षी कीट आदि से किसान की फसल को सुरक्षित रखते हैं और किसान की व उसके परिवार की भी नए अनाज से रक्षा करते हैं। उत्तराखंड के अधिकतर लोग भूमिया मंदिर परिसर में हर साल सामूहिक रूप से भंडारा करते हैं।

दूरगामी नयन डेस्क
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