नैनीताल/बिन्दुखत्ता। आज हिंदी दिवस है! कहने और सुनने में बहुत अच्छा लग रहा है! लेकिन हिंदी का दर्द आज भी अनुयाइयों को कई मोर्चों पर वो सम्मान नहीं दिला पाया जिसकी 14 सितंबर 1949 को कल्पना की गई थी! आज ही के दिन 1949 में हिंदी को राजभाषा के रूप में स्वीकृति प्रदान की गई थी लेकिन उसी पल एक और निर्णय ले लिया गया था कि अंग्रेजी दस साल तक संपर्क भाषा बनी रहेगी! हिंदीं को मान्यता तो राजभाषा की मिल गई लेकिन अंग्रेजी और उर्दू अपनी जगह कायम रही! न्यायालय में आज भी लिखा पढ़ी उर्दू में होती है! न्यायालय में सौ प्रतिशत आज भी उर्दू के शब्दों का प्रचलन है! अंग्रेजी का महत्व कम हुआ या ज्यादा इसका अनुमान स्वयं लगा सकते हैं! हर गली मोहल्ले में कांवेंट स्कूल! हिंदी वाले स्कूल और संस्कृत भाषा के लिए बच्चों को तलाशना पड़ता है! किसी भी भाषा का विरोध नहीं है! सवाल ये उठता है कि हिंदुस्तान में ही जब हिंदी गायब होने लगेगी तब कहीं हिंदी बच सकेगी! हिंदू को बचाने को हिंदी बचानी ही होगी! हिंदुस्थान में हिंदी सौ प्रतिशत ना सही अस्सी प्रतिशत तक तो बची रहे! आज हिंदी दिवस पर भाषण दिए जायेंगे लेकिन शाम को घर में अंग्रेजी का ही बोल बाला रहेगा! हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए एक मिशन बतौर हिंदी के समर्थकों को प्रचार प्रसार करना होगा! हिंदी से प्यार है तो हिंदी में लिखे हर पन्ने को पढ़ना होगा! हिंदी का सम्मान कागजों में भी सौ प्रतिशत हो ये सरकार को निर्णय लेना होगा! आज बदलाव की आंधी में हिंदी सबको उड़ा सकने में समर्थ है लेकिन सरकार की मंशा पर सब निर्भर करता है! हिंदी के साहित्य, हिंदी के समाचार पत्र, हिंदी में लिखा पढ़ी को बढ़ावा सरकार दे तो हिंदी को जन जन की भाषा बनाया जा सकता है! हिंदी दिवस की महत्ता को बचाए रखना हिंदुस्तान के हर नागरिक की जिम्मेदारी भी है! कहावत है *मानो तो भगवान हैं और ना मानो तो नदी का पत्थर*
*जीवन जोशी*
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