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सर्फेस साइंस में उपयोग होने वाली तकनीक का प्रशिक्षण उत्कृष्ट शोध के लिए नोबल सोच आवश्यक : डॉ . अंकुर।

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देहरादून 30 जनवरी 2023

दून विश्वविद्यालय में , भारत सरकार द्वारा समर्थित ‘सिनर्जिस्टिक ट्रेनिंग प्रोग्राम यूटिलाइज़िंग द साइंटिफिक एंड टेक्नोलॉजिकल इंफ्रास्ट्रक्चर’ (स्तुति) योजना कार्यक्रम के तहत रसायन विज्ञान, भौतिकी और पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधन विभाग में ” एडवांस्ड इंस्ट्रुमेंटल टेक्निक्स ऑफ़ सिंथेसिस एंड फैसिकोकेमिकल एनालिसिस ऑफ़ ननोमाटेरिअलस ” पर सात दिवसीय व्यावहारिक प्रशिक्षण कार्यक्रम विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार की पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में स्तुति की परियोजना प्रबंधन इकाई के सौजन्य से २७ जनवरी से २ फरवरी तक आयोजित किया जा रहा है। आज इस कार्यक्रम के चतुर्थ दिन इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पेट्रोलियम के नैनो कटैलिसीस विभाग के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ अंकुर बोरडलोई ने सब प्रतिभागियों को कौंसिल ऑफ़ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च तथा इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ पेट्रोलियम के नवीनतम अनुसंधानों के बारे में बताया। उन्होंने इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग ले रहे देश के विभिन्न राज्यों से आये पीएचडी के छात्र -छात्राओं को सरफेस साइंस के मूल सिधान्तो से विदित करवाते हुए इसके कटैलिसीस में महत्व को बताया। डॉ अंकुर ने इस विषय के उपयोगिता बताते हुए कहा के 1918 का रसायन में नोबेल प्राइज वैज्ञानिक फ्रिट्ज हेबेर को नाइट्रोजन से अमोनिया बनाने के प्रोसेस के अविष्कार के लिए मिला था तथा लगभग 90 वर्षों के बाद 2007 में मैक्स -प्लांक इंस्टिट्यूट के विख्यात वैगयानिक गेरहार्ड को इसी प्रक्रिआ का मैकेनिज्म सरफेस साइंस के सिंद्धांतों के आधार पर गहनता से व्याख्या करने के लिए दिया गया। इसी तथ्य से पता चलता है के सरफेस साइंस के भूमिका नए तकनीकों को विकसित करने एवं समाज के लिए वव्यहारिक रूप से उपयोगी बनाने में कितनी महत्वपूर्ण है। डॉ अंकुर ने प्रतिभागियों को कैटलस्ट तकनीकों की मदद से की जा रही नवीनतम रिसर्च और उसमे सरफेस साइंस की महत्व से अवगत करवाय। प्रतिभागियों की सक्रिय भागीदारी ने इस सत्र को वास्तविक रूप से सफल बनाया।
अंतिम सत्र दून वि वि के स्कूल ऑफ एनवायरनमेंट एण्ड नेचुरल रिसोर्सेस विभाग के डॉ विपिन कुमार सैनी तथा शोधार्थी अनुज चौहान ने प्रतिभागियों को बी ई टी सरफेस एरिया एनालिसिस तकनीक पर व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया उन्होंने कहा कि इस कार्यक्रम के प्रतिभागी कभी भी इस तकनीक का प्रयोग अपने रिसर्च कार्यों के लिए दून यूनिवर्सिटी में दुबारा कर सकते हैं । इस कार्यक्रम में डॉ हिमानी शर्मा, डॉ अरुण कुमार, डॉ चारु द्विवेदी, सहित शिक्षक एवं शोधार्थी उपस्थित रहे।
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