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ब्रेकिंग न्यूज: बीते 10 सालों के आंकड़ों को देखें तो पौड़ी में सिर्फ भूस्खलन की तकरीबन 2040 घटनाएं हुई! हिमालई राज्यों को अलग बजट की दरकार…

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देहरादून। लंबे समय से हिमालई राज्यों की अलग बजट और हिमालय के लिए अलग नीति बनाने की मांग उठती रही है लेकिन आज तक हिमालई राज्यों को अलग नीति अलग बजट नहीं मिल सका !

परिणाम स्वरूप हिमालयी राज्यों में प्राकृतिक आपदाओं का खतरा आए दिन बढ़ता जा रहा है! पहाड़ियां खिसकने लगी हैं जिसमे मानव जीवन के लिए गंभीर चिंता उत्पन्न होती नजर आने लगी है।

भूस्खलन, बादल फटना, एवलांच, बिजली गिरना, आंधी तूफान रूपी घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। बीते कुछ सालों से उत्तराखंड भी ऐसी ही आपदाओं से जूझ रहा है।

भले ही उत्तराखंड को देवभूमि कहा जाता हो लेकिन यहां स्थिति बेहद चुनौतीपूर्ण बनती जा रही है। मानसूनी बारिश में हर पल यहां संकट मंडराता रहता है जिससे मालपा, धराली की घटना उदाहरण है।

एक जानकारी के अनुसार घटनाओं के आंकड़ों को आपदा प्रबंधन विभाग तैयार करता है। विभाग के 2015 से लेकर 2024 तक के आंकड़ों को देखें तो पूरे प्रदेश में इन सालों में तकरीबन 4654 भूस्खलन, एवलांच की 92, बिजली गिरने की 259, बादल फटने की 67, तेज़बारिश और बाढ़ की तकरीबन 12758 घटनाएं हुई हैं।

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मौजूदा आकंड़ों से ज्ञात होता है कि उत्तराखंड आपदा ग्रसित राज्य बन गया है। बादल फटने और भूस्खलन की घटनाएं 13 जिलों में से पौड़ी में सबसे ज्यादा हुई हैं

वहीं उत्तरकाशी में 2015 से लेकर 2024 तक तकरीबन 1525 घटनाएं हुई, जिसमें लैंडस्लाइड से लेकर बाढ़, एवलांच, ओलावृष्टि, बादल फटना, जंगल में आग की घटनाएं भी शामिल हैं। आंकड़ों और मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक उत्तराखंड में 2015-2024 के दशक में प्राकृतिक आपदाओं से कुल मिलाकर करीब 1100 लोगों की मौत हुई है।

इसमें भूस्खलन सबसे बड़ा कारक है, जबकि बाढ़ और अतिवृष्टि और बादल फटना अन्य प्रमुख कारण हैं। सिर्फ लैंडस्लाइड से तकरीबन 319 लोगों ने अपनी जान गंवाई।

पौड़ी जिले के क्षेत्रों में सबसे ज्यादा भूस्खलन और बादल फटने जैसी घटनाओं हुई हैं। बीते 10 सालों के आंकड़ों को देखें तो पौड़ी में सिर्फ भूस्खलन की तकरीबन 2040 घटनाएं हुई। पिथौरागढ़ में 1426, टिहरी में 279, चमोली में 258 और चंपावत 173, उत्तरकाशी में 80, रुद्रप्रयाग में 48, अल्मोड़ा में 30 घटनाएं दर्ज़ हुईं।

बता दें हर साल ये सिलसिला यूं ही चलता रहता है। उत्तराखंड आपदा प्रबंधन सचिव विनोद कुमार सुमन ने कहा कि नेचुरल डिजास्टर के इम्पैक्ट को कम करने के लिए काम किया जा रहा है। जहां-जहां अक्सर भूस्खलन की समस्याएं आती हैं, वहां इसे रोकने के लिए काम ट्रीटमेंट किया जा रहा है।

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इसके अलावा, विभाग द्वारा इन सभी प्राकृतिक आपदाओं पर बारीकी से नज़र रखी जा रही है, जिसकी मदद से उनका अध्ययन किया जाता है। बता दें 5 अगस्त को उत्तरकाशी के धराली औऱ हर्षिल में आई आपदा ने लोगों को झकझोर दिया है।

पानी के साथ आए मलबे से बचने के लिए लोगों इधर-उधऱ भागते नज़र आए, जिनकी वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।

रुद्रप्रयाग के पास पूरा पहाड़ ही खिसक गया इसेवक्या समझा जाएगा और क्या कहा जाएगा ? क्या इसी तरह पूरे हिमालई क्षेत्रों में पहाड़ गिरते रहेंगे! प्रकृति से छेड़छाड़ भी इसमें सहायक कह सकते हैं! अवैज्ञानिक तरीके से हिमालई राज्यों में छेड़छाड़ भी इसके लिए जिम्मेदार है!

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