
देहरादून। इधर गैरसैंण में 17 मार्च को लोग एकत्र होते कि विवादित बयान से चर्चा में आए कैबिनेट मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल ने मंत्री पद से स्वयं इस्तीफा दे दिया है।
भरी आंखों से उन्होंने कहा वह इस राज्य के लिए ट्रक में सवार होकर आंदोलन में डटकर रहे लेकिन आज उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया गया जिससे पूरे राज्य में उनके खिलाफ आंदोलन को भड़काया गया जो दुखद है इसलिए वह आज कैबिनेट मंत्री पद से त्यागपत्र दे रहे हैं।

इस अवसर पर उनकी आंखे नम थी और गला साथ नहीं दे रहा था। उन्होंने आज आंदोलन पर भी मानो एक तरह से विराम लगा दिया है। बताते चलें मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल ने जो बयान दिया उसके खिलाफ जबरदस्त जनाक्रोश देखने को मिला ये आक्रोश एक नजीर भी आने वाले समय के नेताओं और अधिकारियों के लिए होगा!
एक कहावत है *जीभ सुश्री का क्या जाए जिसके हाथ न पांव* यही कहावत मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल पर लागू हो गई और उन्होंने खेद भी जताया और केबिनेट मंत्री पद भी गंवाया! कसूर सिर्फ जुबां का था सजा मंत्री प्रेम चंद्र अग्रवाल को मिली! इसलिए जीभ का इस्तेमाल सही हो यह प्रयास सबका हिना चाहिए!
आने वाले कुछ समय बाद यह सवाल आएगा कि उत्तराखंड के किस मंत्री को अपने बयान के लिए * स्थिपा और खेद प्रकट* दोनों सजा भुगतनी पड़ी ? उत्तराखंड में प्रेम चंद्र अग्रवाल के इस्तीफा मामले से सियासत में कुछ नरमी आने की संभावना है!
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