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टांग खींचने की परंपरा पर विराम कब! धामी सरकार पर टिका दारोमदार! पढ़ें संपादकीय : जीवन की कलम से…

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जीवन की कलम से…

टांग खींचने की परंपरा का अंत कब ?

कोई कुछ करे भी तो करे कैसे ? सही को भी गलत जब जबरन कहा जाएगा और किसी को काम नहीं करने दिया जाएगा तो कोई कैसे कुछ कर लेगा ? ये हाल है उत्तराखंड का सन 2000 में इस राज्य का निर्माण हुआ तब से आज तक टांग खींचने की राजनीति ने इस राज्य का बेड़ा गर्क करके रख दिया है।

पीएम रहते स्व. अटल बिहारी वाजपेई जी ने जनता की भावना को समझा राज्य बनाया और पहले निर्वाचित सरकार के सीएम एनडी तिवारी को विशेष रूप से आर्थिक पैकेज देकर इस राज्य की मजबूत नींव डालने का भरसक प्रयास किया था, उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा!

पंडित नारायण दत्त तिवारी जी ने भी जो विकास का खाका खींचा था वह भी स्वागत योग्य है! उनके सपने के अनुसार सिडकुल की स्थापना हुई और कई नए अवसर तलाशे गए थे! उनको भी कांग्रेस के लोगों ने ढंग से काम नहीं करने दिया! लेटर बम कांग्रेस नेता छोड़ा करते थे!

इसके बाद भाजपा सरकार में भी देखा गया कि अपने ही लोग सरकार को अस्थिर करने के लिए जाल बिनते हैं! पहले खुद गलत करवाते हैं फिर प्रचारित करवाने की परंपरा सी बन गई है!

सीएम पुष्कर धामी सरकार ने अपनी तरफ से पूरा प्रयास किया परीक्षा ईमानदारी से हों लेकिन फिर भी कुछ लोग जबरन सरकार को बदनाम करने की मंशा पाले हुए हैं।

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हर परीक्षा ईमानदारी के साथ संपन्न हो इसके लिए सरकार ने जो पहल की है उससे भी कुछ लोगों का खाना हजम नहीं हो रहा है! हाकम सिंह जैसे कारोबारी पकड़े गए तो धामी सरकार में राज खुला जबकि ये धंधा तो पूर्व से चला आ रहा था! धामी सरकार को चाहिए कि वह सभी परीक्षाओं को जल्द से जल्द निपटाए और पारदर्शिता बरती जाएगी तो ईमानदारी से मेहनत करने वाली प्रतिभा को रोजगार मिलेगा।

धामी सरकार पर जनता के सपनों को साकार करने की जिम्मेदारी है इसलिए सरकार को बेवजह बदनाम करने वाले असामाजिक तत्वों के साथ सख्ती के साथ निपटा जाना चाहिए। बेवजह बदनाम करने वाले लोग पत्रकारिता के नाम पर तमाम तरह से अनर्गल प्रचार कर रहे हैं। पत्रकारिता से जुड़ा हर व्यक्ति जनता की भलाई को देखते हुए कलम का प्रयोग करता है।

आज जिसे पत्रकारिता का अ आ नहीं आता वह डंडा लेकर पत्रकारिता के पेशे को बदनाम कर रहा है जिससे पत्रकारिता से जुड़े ईमानदार पत्रकार भी आहत हैं।

लोकतांत्रिक तरीके से आंदोलन समझ में आता है लेकिन छवि धूमिल करने, काम ही न करने देने वाला विरोध जनता के सपनों के साथ अन्याय नहीं तो क्या है! जिस बच्चे ने मेहनत करके रात दिन जागकर पढ़ाई की है उसकी आत्मा से पूछो कि पेपर लीक होने की खबर उसके लिए कितनी कष्ट देने वाली होती होगी!

अफवाह फैलाई जाती है तो वह सत्य से ज्यादा तेज फैलती है! कहावत है एक झूठ को अगर सौ बार प्रचारित कर दिया जाए तो वह झूठ ही सत्य समझा जाने लगता है! इसलिए बिना सच की तह में जाए बिना किसी भी बात को प्रचारित करना गलत है। सरकार ने इस दिशा में कड़ा निर्णय लेते हुए कुछ लोगों के खिलाफ मामला दर्ज कराया है।

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आजकल फर्जी पत्रकारों की हर जगह बाढ़ सी आ गई है! शराब बेचने वाले भी एक डंडा लेकर घूमते हैं और मजे की बात तो ये है कि अधिकारी और नेता भी इनके डंडे के आगे नतमस्तक होकर खड़े हो जाते हैं!

किस चैनल का है ? किस अखबार का है ? पता नहीं! असली में जो ईमानदारी से पत्रकारी कर रहा है वह ये सब ड्रामा जानता तक नहीं! कुछ फर्जी पत्रकारों ने असली पत्रकारों के लिए समस्या खड़ी कर दी है! प्रेस कान्फ्रेस हो तो दर्जनों आईडी टेबल पर दिखती हैं जिनका प्रसारण कहां होता है जानकारी नहीं!

सरकार को सही मार्ग दिखाना स्वस्थ पत्रकारिता है! बदनाम करने के लिए विपक्ष ही काफी है फिर सोशल मीडिया पोर्टल संचालकों को पत्रकारिता के मापदंड जनहित को सर्वोपरि रखते हुए बनाने होंगे! पोस्ट की लोकप्रियता नहीं जानता के सपनों को साकार करने के लिए मजबूत सामूहिक पहल की इस राज्य को दरकार है।

किसी की टांग खींचने या किसी को बेवजह बदनाम करके राज्य का विकास नहीं हो सकता। जनपक्षीय पत्रकारिता की उत्तराखंड को दरकार है! गलत का विरोध होना चाहिए लेकिन सही को भी कूटनीति के तहत गलत ठहराए जाने की परंपरा का अब संस्कार कर दिया जाना चाहिए।

संपादक : जीवन जोशी

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