प्रदेश के सरकारी स्कूलों में तेजी से छात्र संख्या घटती जा रही है। इसे देखते हुए सरकार ने वर्ष 2021-22 में उत्तराखंड बोर्ड के सरकारी स्कूलों को प्रयोग के तौर पर सीबीएसई बोर्ड से चलाने का निर्णय लिया। पहली परीक्षा में आधे छात्र-छात्राओं के फेल होने से सरकार का प्रयोग भी फेल हो गया। पहले चरण में 189 सरकारी स्कूलों को अटल उत्कृष्ट स्कूल बनाया गया था।
इन स्कूलों के छात्रों ने इस साल पहली बार सीबीएसई बोर्ड की 10 वीं और 12 वीं की परीक्षा दी, लेकिन 12 वीं में जहां आधे छात्र फेल हो गए। वहीं 10वीं का पास प्रतिशत मात्र 60.49 प्रतिशत रहा है। शिक्षकों का मानना है कि बच्चे नहीं बल्कि सिस्टम फेल हुआ है। सरकार की ओर से प्रयोग के तौर पर इन स्कूलों को अटल उत्कृष्ट स्कूल तो बना दिया गया, लेकिन इन स्कूलों में न तो पर्याप्त संबंधित विषय के शिक्षक थे न प्रिंसिपल।
अंग्रेजी माध्यम से बच्चों को पढ़ाने के नाम पर केवल कुछ शिक्षकों को सुगम में तैनाती कर दी गई। दुर्गम क्षेत्र के स्कूलों में विभाग को शिक्षक नहीं मिले। इन स्कूलों में शिक्षकों की तैनाती में भी दोहरी व्यवस्था अपनाई गई। सरकारी स्कूलों के कुछ शिक्षकों को स्क्रीनिंग परीक्षा के माध्यम से इन स्कूलों में लाया गया। वहीं वे शिक्षक भी इन स्कूलों में जमे रहे जो बिना स्क्रीनिंग परीक्षा के पहले से यहां कार्यरत थे। अंग्रेजी माध्यम के स्कूल बनाने के नाम पर इन स्कूलों को केवल सीबीएसई की मान्यता दिला दी गई।
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