कालेगांव से अस्थल गांव के बीच नागरिकों ने निकाली यात्रा- फव्वारा चौक में शहर के पेड़ों के निमित्त हुई पेड़ सभा सार्वजनिक स्थान के पेड़ों को हेरिटेज पेड़ घोषित कर उनकी देखभाल की नीति बने जल रहे जंगल हमारे फिर आज हरेला कैसे हो।
धाद के साथियों के द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर उत्तराखण्ड में वनाग्नि के सवाल पर ‘पेड़ों के साथ चलो’ पैदल यात्रा की गयी । यात्रा कालेगांव से अस्थल गांव के जंगल के बीच निकाली गयी जिसमें उत्तराखण्ड के विरासत में मिले जंगलों पर वनाग्नि से होने वाले नुकसान पर चिंता जाहिर की गयी।
यात्रा के संयोजक हरेला वन के सचिव सुशील पुरोहित ने कहा कि यदि इसी गति से उत्तराखण्ड के जंगल वनाग्नि की भेंट चढ़ते जाएंगे तो आने वाली पीढियां हमें इस दुर्दशा के लिये माफ नहीं करने वाली हैं।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पद्मश्री प्रीतम भरतवाण ने कहा कि कंक्रीट के जंगल बढ़ते जा रहे हैं और प्राकृतिक धरोहरों का लगातार दोहन कर आज हमने अपने पहाड़ का मौलिक स्वरूप खो दिया है, इसलिए आने वाले समय की चिंताओं को ध्यान में रखकर सामाजिक संस्थाओं और सरकार को मिलकर प्रयास करना चाहिये।
सामाजिक कार्यकर्ता गजेन्द्र नौटियाल ने कहा कि जंगलों और पर्यावरण के प्रति हमें अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी का भी निर्वहन करना पड़ेगा ताकि हम बेहतर कल और भविष्य की कल्पना कर सकें। जिसमें सरकारी कार्यो/प्रयासों की निरंतरता आवश्यक है।
फारेस्ट रिसर्च इन्स्टिट्युट के शोधकर्ता वर्मा ने कहा कि जंगल बचाने के लिए जरूरी है हम वो पौधे रोपें जो हमारे स्थानीय वातावरण से हों, न कि कोई खास, सुंदर परंतु अलग क्लाइमेट जोन वाले। उन्होंने बताया कि जंगल में आग लगना एक प्राकृतिक घटना है बशर्ते वो एक प्राकृतिक रूप से लगी हुई आग हो।
एक निश्चित अंतर पर आग लगने से जंगल अपने आप को पुनर्जीवित करता रहता है, अपनी पारिस्थितिकी का समन्वय बनाए रखता है। वरिष्ठ पत्रकार डी0एस0 रावत ने कहा कि जिन जंगलों को हमारे पूर्वजों ने बडी अथक मेहनत और अभावग्रस्त साधनों के साथ पाला-पोसा उसके बेवजह दोहन से आने वाले समय में खतरनाक स्थिति उत्पन्न हो जायेगी।
धाद के सचिव तन्मय ममगाईं ने कहा इस साल उत्तराखण्ड के जंगलों में भीषण वनाग्नि लाखों पेड़ों और उससे जुड़े पारिस्थितिकी तंत्र को लील गयी। लेकिन एक चिंताजनक पहलू यह रहा कि इसको लेकर चुनिन्दा जागरूक नागरिकों को छोड़कर कोई बड़ा सामाजिक रोष नजर नहीं आया। ऐसा ही खलंगा में प्रस्तावित वन कटान को लेकर हुआ यह सब बताता है कि हम अपने पेड़ों और जंगलों को लेकर एक गहरी उदासीनता में हैं और उनकी जरुरत और प्रभाव के साथ हमारा सम्बन्ध कहीं कमजोर हो रहा है।
धाद के अध्यक्ष लोकेश नवानी ने कहा कि एक समाज के तौर पर हम असंवेदनशील होते जा रहे हैं। हमारे आसपास क्या घट रहा है, जंगल कट रहे हैं हम इस सबके प्रति असंवेदनशील हैं। पर्यावरण दिवस पर शहर में सार्वजनिक स्थानों पर मौजूद पेड़ों के बाबत पेड़ सभा की गयी. फव्वारा चौक नेहरू कॉलोनी में पिलखन के पेड़ के नीचे आयोजित सभा में एकत्र लोगों ने शहर में लगातार घट रहे पेड़ पर चिंता जाहिर की और वर्तमान में मौजूद पेड़ों के संरक्षण के बाबत नीति की मांग की।
सभा को सम्बोधित करैत हुए ट्रीज ऑफ दून-धाद के संयोजक हिमांशु आहूजा ने कहा आज जब देश भर में गर्मी और लू का प्रकोप हो रहा है तो तमाम लोगों को पेड़ों की छाया का महत्व समझ में आ रहा है। जहां शहर कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो रहे हैं वहां हरियाली और प्रदूषण सोखने में अव्वल पेड़ों की जरूरत महसूस हो रही है।
देहरादून शहर में अंधाधुंध कटते हुए पेड़ से न सिर्फ हमारे शहर की सेहत बिगड़ रही है अपितु असमय बारिश और बाढ को भी न्यौता दे रहे हैं। इस अवसर पर शासन और आम समाज के निमित्त प्रस्ताव को पारित किया।
गया सार्वजानिक स्थान पर मौजूद पेड़ों के इर्द गिर्द सांस लेने का स्थान बनाया जाए। शहर के मुख्य मार्गों पर पौधे रोपने सामुदायिक योजना का प्रस्ताव बने। देहरादून में हेरिटेज पेड़ चिन्हित कर सौन्दर्यकरण किया जाय।
कार्यक्रम में नीना रावत, कंचन बुटोला, सुशीला गुसाईं, मीनाक्षी जुयाल, वीरेन्द्र खण्डूरी, डी0एस नौटियाल, मनोहर लाल, महावीर रावत, बृजमोहन उनियाल, साकेत रावत, विकास मित्तल शांति प्रकाश जिज्ञासू, दयानंद डोभाल, विकास बहुगुणा, राजीव पांथरी, गणेश चंद्र उनियाल, आशा डोभाल, सविता जोशी, विमला रावत, शुभम व स्थानीय ग्रामीण उपस्थित थे।
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