
गैरसैंण। उत्तराखंड के गैरसैंण में लंबे समय से चल रहे आमरण अनशन को 16 मार्च उस समय विराम मिला जब अहंकारी और गालीबाज माने जाने वाले मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल ने अंततः रोते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया।

इस महत्वपूर्ण निर्णय के बाद अनशनकारी भुवन कठायत, कार्तिक उपाध्याय और कुसुम लता बौड़ाई ने अपना अनशन समाप्त किया।
मौन व्रत तोड़ने के बाद कुसुम लता बौड़ाई के पहले शब्द थे— “जय उत्तराखंड”, जो इस आंदोलन की भावना और संकल्प को दर्शाते हैं। अनशनकारियों की इच्छा के अनुसार, वरिष्ठ राज्य आंदोलनकारी धूमा देवी ने अनशन तुड़वाया, जो इस ऐतिहासिक क्षण की साक्षी बनीं।

पहले दिन से ही धरना स्थल पर डटे और एक समय के भोजन पर निर्भर आयुष रावत और आशीष नेगी ने भी अन्य अनशनकारियों के साथ भोजन ग्रहण किया, मंत्री प्रेमचंद के इस्तीफे के बाद पूरे प्रदेश में हर्ष की लहर दौड़ गई।
इस ऐतिहासिक अवसर पर आशीष नेगी और आयुष रावत ने पूरे उत्तराखंड को इस विजय की बधाई दी और कहा कि “जब-जब उत्तराखंड के स्वाभिमान को ठेस पहुँचाई जाएगी, तब-तब पहाड़ के बेटे-बेटियाँ इसी तरह आगे आते रहेंगे।”
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह लड़ाई किसी राजनीतिक पार्टी या विशेष संगठन की नहीं, बल्कि पूरे उत्तराखंड के स्वाभिमान की थी। एक दिन पूर्व, आंदोलनकारियों ने अपने रक्त से लिखे पत्र को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को तहसीलदार के माध्यम से पहुँचाया।
इसके बाद, इस पत्र के लिए अपना रक्त देने वाले आयुष रावत ने कहा कि उन्हें बहुत खुशी है कि उनका रक्त उनके राज्य के काम आया और आखिरकार एक घमंडी और बेशरम मंत्री को उसका पद त्यागना पड़ा।
इस आंदोलन की सफलता उत्तराखंड के संघर्षशील युवाओं और आंदोलनकारियों की एकता और दृढ़ निश्चय का प्रमाण है। यह जीत उत्तराखंड के सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए लड़ने वाले हर नागरिक की जीत है।













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