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संपादकीय(जीवन की कलम से):-जनता को बातो व वादों से नही,बढ़ती महंगाई से दिलानी होगी निज़ात…

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  • आम आदमी की स्थिति आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया जैसी..
  • खींचतान में पिस रहा आम आदमी..!

*बढ़ती महंगाई के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को संयुक्त रूप से जिम्मेदार माना जा रहा है और ऐसा है भी!

बढ़ती पेट्रोल डीजल की कीमतों ने आग में घी का काम किया है जिसका सीधा प्रभाव आम आदमी की थाली पर देखने को मिल रहा है!इंधन के दाम बढ़ने से माल ढुलाई महंगी हो गई जिसके कारण रोजमर्रा इस्तेमाल होने वाले सामान की कीमतों में बेहताश वृद्धि हुई है!आम आदमी की स्थिति आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया जैसी हो गई है ऐसी स्थिति में अक्सर सरकारों के पास एक बहाना होता है कि युद्ध या महामारी के कारण महंगाई बढ़ना स्वाभाविक है! पर क्या इतनी महंगाई बढ़ना कि जिसमें कोई सामान साठ फीसद तक महंगा हो जाए? आम आदमी सोचने पर मजबूर हो जाता है कि हमारी आर्थिक आपातकाल के लिए क्या योजनाएं और प्राथमिकताएं हैं? क्या ऐसे आपातकाल में आम आदमी को भूखा मरने के लिए छोड़ दिया जाएगा? आज भी हमारे पास ऐसी योजनाओं और कार्यक्रमों का अभाव है जिसमें ऐसी आकस्मिक और आपातकालीन स्थितियों में देश की जनता को बढ़ती कीमतों की मार से कुछ राहत दे सके!पेट्रोल डीजल पर करों की कटौती के मामले में राज्य सरकारें और केंद्र सरकार आमने सामने हैं! कोई भी अपना हिस्सा नहीं छोड़ना चाहता है! इस खींचतान में पिस रहा है आम आदमी! राज्य सरकारों को अपनी जनता के प्रति संवेदनशील होने की आवश्यकता है! पेट्रोल डीजल पर लगने वाले वैट को कुछ कम करने से अगर जनता को बढ़ती महंगाई से राहत मिल सकती है तो आकस्मिक तौर पर यह कदम उठाना ही चाहिए! केंद्र सरकार को भी राज्य सरकारों को यथासंभव आर्थिक मदद करनी होगी ताकि राज्य सरकारें इंधन के बढ़ते दामों को कम करने के लिए प्रोत्साहित हों।

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