नैनीताल /बिंदुखत्ता। उत्तराखंड में लगातार आपदा का दंश झेल रहे लोगों ने उत्तराखंड के नैनीताल और उधमसिंह जनपद से लगे भू भाग को सन 1952 में अपनी कर्म भूमि के रूप में चुना जिसे आज बिंदुखत्ता कहा जाता है। पहाड़ के आपदा पीड़ितों ने जंगली जानवरों के साथ जहां संघर्ष किया वहीं शासन और प्रशासन के दमन का सामना भी किया। अनेकों आंदोलन हुए जिसके बाद 1987 में बिंदुखत्ता की जनता को राशन कार्ड मिले। बिंदुखत्ता की जनता राजस्व गांव बनाए जाने के लिए लंबे समय से आंदोलनरत है हर चुनाव में जनता को राजस्व गांव के सपने दिखाए जाते हैं हर राजनीतिक दल ने अपने चुनावी घोषणा पत्र में बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाए जाने का वादा किया लेकिन आज तक एक भी राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणा पत्र पर खरा नहीं उतर सका है। साढ़े तेरह हजार हेक्टेयर में बसा बिंदु खत्ता राजनीतिक गलियारों में फंस गया है। राज्य आंदोलन में भी क्षेत्र की जनता ने रात दिन एक किया था, सोचा था अलग राज्य बनने के बाद राजस्व गांव मिल जायेगा लेकिन राज्य बनने के बाद बिंदुखत्ता की पुरानी मांग अब तक मांग हो रह गई है। राजस्व गांव नहीं होने के चलते हर साल गौला नदी किनारे रहने वाले सैकड़ों लोगों की जमीन निगल जाती है, कई घर परिवार बेघर हो गए हैं लेकिन उनको मुआवजा नहीं मिलता। हर साल नदी गांव को निगलती जा रही है लेकिन गांव बचाने के लिए किसी के पास कोई विजन नहीं है। जनता को बेवकूफ बनाने का सिलसिला 1987 से चल रहा है। जनता की मांग है कि बिंदुखत्ता को राजस्व गांव बनाया जाए। लोगों का कहना है बिंदुखत्ता को राजस्व गांव चाहिए फिर पंचायती राज व्यवस्था से ही विकास हो जायेगा। जनता को उम्मीद है वर्तमान विधायक सरकार से इस पर केंद्र सरकार को प्रस्ताव भिजवाएंगे। जनता राजस्व गांव के लिए फिर से बड़ा आंदोलन भी कर सकती है इसलिए शासन और प्रशासन जनता की न्यायोचित मांग को गंभीरता से लें। लोग कहते हैं विधायक डॉ मोहन बिष्ट से उम्मीद है कि वह अपने कार्यकाल में जनता को दिखाए सभी सपने पूरे करेंगे।
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