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उत्तराखण्ड का इतिहास एक नजर में, दिल दहला देने वाली घटनाओं के साथ,जरूर पढ़े…

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वर्ष 1916 में कुमायूॅ परिषद की स्थापना के साथ ही उत्तराखण्ड विशेषकर अल्मोड़ा जनपद में ब्रिटिश हुकुमत के प्रति समय -समय पर बड़े विरोध प्रदर्शन दिखाई देते रहे हैं, इन प्रदर्शनों की पृष्ठभूमि अधिकांशतः जनवादी रही है। इस विरोध का सबसे बड़ा प्रस्फुटन 14 जनवरी 1921 को उत्तरायणी मेले बागेश्वर में दिखायी दिया, जबकि 10 हजार से अधिक के आन्दोलनकारियों ने दशकों से गुलामी के दस्तावेज बैगार रजिस्टर सरयू नदी में प्रवाहित कर दिए, इसके बाद वन आन्दोलन और नमक आन्दोलनों में भी क्षेत्र ने बढ़-चढ कर भाग लिया इन संघषो का मुख्य केन्द्र पश्चिमी अल्मोड़ा में सल्ट, पूर्वी अल्मोड़ा में जैती और सालम तथा उत्तरी अल्मोड़ा में द्वाराहाट से सोमेश्वर बागेश्वर तक का क्षेत्र गया। स्वयं अल्मोड़ा एक बड़े आन्दोलन का केन्द्र था.

#सालमक्रान्ति

23 जून 1942 को शहरफाटक मे श्री हरगोविंद पंत द्वारा राष्ट्रीय ध्वज फहराकर, एक विशाल जनसभा का आयोजन किया गया. जिसकी खबर मल्ला सालम के पटवारी रघुवर दत्त को मिली तो वह आनन-फानन में शहरफाटक पहुंच गया. उसने बलपूर्वक सभा को भंग कर राष्ट्रीय ध्वज को उतार दिया गया. इस बात की प्रतिक्रिया स्वरुप कांग्रेस कमेटी मल्ला सालम द्वारा 1 अगस्त 1942 को तिलक जयंती के उपलक्ष्य में 11 स्थानों पर राष्ट्रीय ध्वज फहराने और सभा करने का संकल्प लिया गया।इस कार्य को पूरा करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में जन जागरण और चेतना का व्यापक अभियान चलाया गया. राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की चेतना के विस्तार के कार्य मे सालम क्षेत्र में सर्वश्री बिशन सिंह बिष्ट, राम सिंह आजाद, रघुवर दत्त पांडे, धाम सिंह, हरिदत्त उपाध्याय आदि प्रमुख थे. तिलक जयंती के संकल्प को 1 अगस्त को शहर फाटक, सांगण, देवलखान, बसंतपुर, झालडुंगरा तथा तल्ला सालम के जैंती, चैखुरा,नौगांव आदि स्थानों मे राष्ट्रीय ध्वज फहरा कर तथा सभाएं आयोजित कर पूरा किया गया।राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन को क्षेत्र मे “कौमी एकता दल” चला रहा था.।इस सक्रिय दल को बागी दल भी कहा गय। बागी दल द्वारा स्वाधीनता आन्दोलन की चेतना के विस्तार के लिए 12 अगस्त 1942 से सांगण मे कौमी एकता दल का कैम्प लगाने का प्रस्ताव किया गया जिसके लिए राम सिंह आजाद को कैम्प संयोजक, प्रताप सिंह बोरा और भगवान सिंह धानक को प्रशिक्षक तथा हरिदत्त उपाध्याय को कैंप कमांडर चुना गया.कैंप आयोजित करने के लिए व्यापक तैयारियां चल रही थी. क्षेत्र के युवाओं ने बड़ी संख्या में कौमी एकता दल में भर्ती की पेशकश की जिसकी भनक स्थानीय प्रशासन को लग गई. प्रशासन द्वारा अल्मोड़ा के जिलाधिकारी को रिपोर्ट दी गयी कि बागी दल की गतिविधियों को नियंत्रित करने के लिए सेना की मदद दी जाए. लेकिन जिलाधिकारी ने नायब तहसीलदार भुवन चंद्र, पेशकार भवानी दत्त को सभी पट्टी के पटवारी, लाइसेंसदार, पुलिस तथा अन्य संसाधन से सेना के बिना ही, बागी दल को गिरफ्तार और नियन्त्रित करने के आदेश दिए, यह दल पूर्ण तैयारी और 7-8 बंदूकों सहित सालम क्षेत्र को रवाना हुआ, सरकारी दल की आमद तथा उसके इरादों की खबर बागी दल के गुप्तचरों को लग गई। उनके द्वारा समय रहते यह खबर अपने दल को सालम क्षेत्र में पहुंचा दी गयी. बागी दल सावधान हो गया तथा आसपास के ग्रामीण भी दल का मुकाबला करने का मन बनाने लगे. सरकारी दल 9 अगस्त को जैंती के प्राइमरी स्कूल पहुंच गया और स्कूल मे ही अपना मुख्यालय बना लिया. दो दिन बाद देवीधूरा का मेला था. कौमी सेवादल के सदस्यों ने मेले तक गिरफ्तारी देना उचित न समझा. वैसे भी सरकारी दल के बस मे दल के सदस्यों को गिरफ्तार करना नहीं था।लेकिन 10 अगस्त को दुर्गादत शास्त्री ने स्वयं अपनी गिरफ्तारी दे दी, सैकड़ों की संख्या मे जनता नारे लगाकर उनके साथ चलने लगी तो उन्होनें जनता से निवेदन किया कि उन्हें छोड़ने सिर्फ जमन सिंह नेगी ही आएंग. बडी विनती के बाद जनता अपने घरों को लौटी. 11 अगस्त की सुबह दो पटवारी राम सिंह आजाद के घर धमक गए. बड़ी दुविधा थी 12 अगस्त से सांगण का कैम्प प्रारम्भ करने की. जिम्मेदारी राम सिंह आजाद की ही थी. इसी असमंजस के दबाव में वह पटवारियों को चाय नाश्ता करा कर शौच के बहाने खिसक लिए और फिर हाथ नहीं आए. वे बसंतपुर में छिपकर रहने लगे और वहीं से उन्होंने सांगण कैंप का सफल आयोजन किया । अंग्रेजों ने राम सिंह आजाद को भगोड़ा घोषित कर दिया जबकि वे बसंतपुर में श्री नरेंद्र वर्मा के घर में रहकर ही आजादी की जंग को अंजाम दे रहे थे. यहां उनका साथ दो युवा क्रांतिकारी बच्ची सिंह बिष्ट और लाला बाजार, अल्मोड़ा के बाबूराम अग्रवाल दे रहे थे. सत्याग्रहियों का एक दल जैंती के समीप ही नौगांव में छिपा था और सरकारी दल की गतिविधियों में नजर रखे हुए था.माना यह जा रहा था कि शाम ढलने के बाद सरकारी दल सत्याग्रहियों की गिरफ्तारी की कोशिश नहीं करेगा, इसलिए अंधेरा होने पर सभी सत्याग्रही भजन कीर्तन में मगन हो गए. लेकिन चालाकी से अंग्रेजी दल ने रात मे ही अपनी कार्यवाही को अंजाम दिया और 15 सत्यग्रहियो को नौगांव में घेरकर गिरफ्तार कर लिया। यहां वारन्ट गिरफ्तारी दिखाने को लेकर थानेदार वीर सिंह से गंभीर विवाद भी हुआ. गिरफ्तार किए गए 15 सत्यग्रहियों मे सर्वश्री रेवाधर पाँडे, राम सिंह, हरसिंह बिष्ट, कमलापति, बाबूराम अग्रवाल, भवान सिंह धानक, लक्ष्मण सिंह क्वैराला आदि प्रमुख थे जिन्हें हांक कर रात में ही जानवरो की तरह अल्मोड़ा को ले जाया जाने लगा. इस बात की खबर आसपास के ग्रामीणों को लगी तो बहुत तीखी प्रतिक्रिया हुई, रात मे ही हजारों की संख्या मे ग्रामीण जलती मशाल और लाठी-डंडे लेकर नारे बाजी करते हुए अल्मोड़ा देवीधूरा मार्ग पर वीरखम्ब के मैदान मे सरकारी दल के पहुंचने से पहले पंहुच गए, मशालें और देशभक्ति के नारों ने रात्रि में वीरखम्ब मैदान में युद्ध का वातावरण तैयार कर दिया था।जनता के उग्र हो रहे तेवरों से सरकारी दल सहम गया, सरकारी दल सत्याग्रहियों को घेरे हुए रात्रि 11 बजे बीरखम्ब के मैदान मे पहुंचा. तब धर्म सिंह बोरा और लछम सिंह बोरा ने ललकार कर सरकारी दल से कहा “तुम्हें गोरी सरकार और अपनी बंदूकों पर बडा गुमान है. तुम अपने ही भाईयो को एसे जानवरो की तरह हांक रहे हो.”जनता ने सीटियां बजाकर वातावरण उत्तेजनापूर्ण कर दिया. सरकारी दल को अपनी गलती का अहसास हो चुका था, बचने के लिए वह माफी मांग कर सत्याग्रहियों की वापसी के लिए भी अनुनय-विनय करने लगे, लेकिन जनता कहाँ मानने वाली थी. तभी मर्चराम ने थानेदार वीर सिंह पर हमला कर उसका हाथ तोड़ दिया. हल्का पटवारी ने धमकाने की गरज से एक हवाई फायर किया तो छर्रा युवा क्रान्तिकारी शेर सिंह के पेट मे लग गया. तब क्या था जनता ने सत्याग्रहियों को अलग हटने को कहा और सरकारी अमले पर लाठी डंडों से हमला कर दिया. भगदड़ मची.हमले का मकसद सरकारी कर्मचारियों को सिर्फ सबक सिखाना भर था. इसी लिए किसी भी कर्मचारी की हत्या नही की गई. सरकारी दल ने झाड़ियों मे छिपकर अपनी जान बचाई. बीरखम्ब का मैदान भगदड़ के उपरान्त लगों के सामान, जूतों और चश्मों से पटा पड़ा था.मुक्त किये आन्दोलनकारियों ने जनता के साथ बैठक कर महत्वपूर्ण निर्णय लिए कि 1. पांच सयाने लोगों की कमेटी से आगे का आन्दोलन चलायेगी. कमेटी में सर्वश्री लछम सिंह बोरा, रेवाधर पाण्डे, राम सिंह आजाद, भवान सिंह धानक और लक्षमण सिंह क्वैराली को शामिल किया गया।2. 15-सदस्यीय गुप्तचर दल का गठन।3. पोस्ट आफिस को नियन्त्रण में लेना।4. क्षेत्र में जन जागरूकता का अभियान चलाना।5. 24 अगस्त को जैंती प्राइमरी स्कूल में अधिक से अधिक संख्या मे स्थानीय जनता को इकट्ठा कर आगे अन्दोलन की रणनीति बनाना।6. पूरी कार्यवाही में अपना बचाव करते हुए संगठन की शक्ति को बढ़ाना।पोस्टमास्टर छविदत्त सनवाल ने आसानी से हथियार डाल, पोस्ट आफिस का नियन्त्रण सत्याग्रहियों को दे दिया और क्षेत्रीय पटवारी जोगी रात में ही जोगी का भेस बनाकर भाग गया,इस आन्दोलन में जैंती, सालम, शहरफाटक से देवीधूरा तक का क्षेत्र लगभग आजाद हो गया था, यहां रोज ही जुलूस निकलत, क्षेत्र में ब्रिटिश हुकूमत कमजोर पड़ जाने से अंग्रेजों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं, उन्होने पूरे सालम क्षेत्र में पुनः प्रभावी ब्रिटिश राज की स्थापना के लिए जिलाधिकारी अल्मोड़ा ने बड़े स्तर पर विचार-विमर्श किया और यह निर्णय लिया कि चूंकि सत्याग्रहियों द्वारा पूरे सालम क्षेत्र को 24 अगस्त 1942 को जैंती में एकत्रित होने का आह्वान किया है, सालम क्षेत्र का दमन करने का यह अच्छा मौका है, इस उद्देश्य से 1000 ब्रिटिश सैनिकों का दल 24 अगस्त को जैंती पहुंचा।स्थानीय जनता ने भारत माता की जय, शहीदों की जय के नारों के साथ ब्रिटिश फौज का मुकाबला किया. ब्रिटिश फौज ने निहत्थी जनता पर गोलीबारी की, भीड़ तितरबितर होने लगी. इसी दौरान गोली लगने से चैगुना के नरसिंह धानक और कांडे के टीका सिंह कन्याल इस जनयुद्ध में शहीद हो गए. यूं तो इस सैनिक दमन का कोई विशेष प्रभाव नहीं हुआ लेकिन ब्रिटिश हुकूमत को अपनी हनक बरकरार रखने का भ्रम बना रहा।सालम की इस जनक्रान्ति और कुर्बानी से आजादी की लड़ाई और तेज हो गई. सालम के संघर्ष को जनक्रांति कहा जाने लगा. अल्मोड़ा जनपद में अल्मोड़ा, चनौदा, द्वाराहाट, चैखुटिया मे भी व्यापक संघर्ष हुआ. द्वाराहाट के मदनमोहन उपाध्याय भी एक बड़े समाजवादी जननायक के रूप में उभरे. जिन पर 1000/रूपये का इनाम भी घोषित हुआ उधर पश्चिमी अल्मोड़ा मे सल्ट क्षेत्र में भी एक बड़ा आन्दोलन का केन्द्र बन गया था जहां 5 सितम्बर 1942 को खुमाड़ मे बडा गोलीकांड हुआ जिसमें 4 वीर शहीद हुए।इस प्रकार इन जनआन्दोलनों से कुमायूॅ क्षेत्र में राष्ट्रीय आन्दोलन की धार राष्ट्र की मुख्य धारा से भी तेज बनी

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