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नदियों को बचाने के लिए उत्तराखंड हाईकोर्ट गंभीर! पढ़ें संपादकीय! जीवन की कलम से…

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संपादकीय

जीवन की कलम से…

हाईकोर्ट को देना पड़ा आदेश!

उत्तराखंड में खनन माफिया ने राज्य की पहाड़ियों की जड़ों को तक खोदने का काम किया है जिससे हर साल पहाड़ियों के दरकने का सिलसिला तेज होता जा रहा है। आजादी से पहले जिस तरह जानता का जल, जंगल, जमीन पर अटूट रिश्ता कायम था उस रिश्ते को माफिया लॉबी ने तोड़ दिया है। आज माफिया ट्रकों के हिसाब से इमारती लकड़ी जंगल से ले जाया जाता है तब उसे मिली भगत के चलते जाने दिया जाता है! ही हल्ला मच गया तो लकड़ी आरा मशीन से बरामद हो जाती है अन्यथा सब चलता है! दूसरी ओर गांव वाले घास और जलोनी लकड़ी लाते हैं तो उनको पकड़ कर घास और लकड़ी विभाग लूट लेता है! खनन माफिया ने राज्य स्थापना के बाद जिस तरह अपनी समानांतर सरकार उत्तराखंड में चलाई है उसके चलते उत्तराखंड के जंगल, उत्तराखंड की पहाड़ियां खतरे में पड़ गई हैं! नदियों में हर साल उतना माल तो आता नहीं जितना खनन का लक्स रखा जाता है! चुगान के नाम पर खनन का खेल उत्तराखंड के भविष्य को संकट की तरफ ले जा रहा है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने ताजा फैसला सुनाते हुए राज्य की नदियों में जेसीबी मशीनों से चुगान पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी है जो स्वागत योग्य कदम कहा जा रहा है। नदियों की गहराई का आंकलन किया जाए तो अधिकांश नदियां एनजीटी के मानकों पर खरी नहीं उतरती हैं! बेहिसाब अवैध खनन भी इसका एक बड़ा कारण है। बताते चलें नदियों से चुगान की अनुमति है! सिर्फ नदी की संपदा को बीन सकते हैं लेकिन यहां तो नदियों का सीना चीर दिया गया है! निरीक्षण को आने वाली टीम को वह जगह दिखाई जाती है जहां मानक पर खनन हुआ है। नदियों और पहाड़ों को बचाने की दिशा में पहल आम जनता को भी करनी होगी। जनता को उत्तराखंड की नदियों और पहाड़ों को बचाने के लिए मजबूत पहल शुरु करनी होगी। सरकार को भी चाहिए की वह राज्य हित में माफिया संस्कृति पर रोक लगाए। माफिया सरकार को भी राजस्व का भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेश से माफिया लाबी में हड़कंप मच गया है देखना है अदालत के आदेश पर कितना अमल होता है!

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