जीवन की कलम से…
उत्तराखंड की चिन्ता करने वाले अनेकों पर्यावरण प्रेमी आज दुनियां में नहीं हैं उनकी हर बात आज सत्य साबित हो
हो रही है। आज सुंदर लाल बहुगुणा होते तो वह न जाने किस धार का आन्दोलन खड़ा कर डालते लेकिन दुर्भाग्य है कि आज स्वार्थ से प्रेरित होकर लोग सत्य से दूर बनावटी दुनियां में अपने को दर्शाने पर तुले हैं। जोशीमठ बर्बादी के कगार पर खड़ा है। इस क्षेत्र का हर आदमी कड़ाके की ठिठुरती ठंड में दिन भर सड़क में आंदोलन करता है और रात में मशालें हाथ में थामे सरकार को जगाने की कोशिश कर रहा है। लोगों का आरोप है कि सत्तर के दशक में मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट समझाती रही कि जोशीमठ जैसे अति-संवेदनशील जगह पर अनियंत्रित विकास जोखिम भरा हो सकता है विडंबना देखिए सरकारें विकास किये बिना मानती कहाँ है! अब कैसे विकास का माडल उत्तराखंड देखेगा ? लोग पोस्ट में लिख रहे हैं इसका उदाहरण मिलने लगा है भूगर्भ वैज्ञानिक, पर्यावरणविद, सामाजिक कार्यकर्ता समय-समय पर सरकारों को आगाह करते रहे कि बेतरतीब ब्लास्टिंग कर डैम, टनल, बड़ी जल विद्युत परियोजना, बहुमंज़िला इमारतें मत बनाइये लेकिन जनता को विकास की बात कहकर या तो समझा दिया या फिर चुप चाप रहने के कई तरीके समझा दिए और विकास के नाम पर जो कुछ हुआ वो जोशीमठ बयां कर रहा है! अंधाधुंध निर्माण कार्य शुरू कर दिया जिससे उत्तराखंड के पहाड़ दरकने लगे हैं इसके लिए जिम्मेदार लोगों पर वर्तमान सरकार मुकदमा दर्ज कर जांच शुरू करे कि इसकी अनुमति जिसने दी वो जिम्मेदार होगा।
जोशीमठ बद्रीनाथ धाम का गेटवे है और इस ऐतिहासिक शहर का ज़मींदोज़ हो जाना हिमालय में विनाश की पहली घंटी है समझो! केदारनाथ, बद्रीनाथ, नैनीताल, मसूरी जैसे गंतव्य में किया गया अनियंत्रित विकास उन्हें दूसरा जोशीमठ बनाने की तरफ़ अग्रसर हो रहा है इसका श्री गणेश नैनीताल की सड़क का तेज़ी से धंसना, गोपेश्वर, रुद्रप्रयाग, पौड़ी, उत्तरकाशी जैसे शहर भी टाइम बम पर बैठे हैं और कब फट जाएँगे कोई नहीं जानता! जोशीमठ में की गई ब्लास्टिंग, टनलों का जाल और बिजली उत्पादन के लिए बनाए गए बाँधों का परिणाम लोग देख रहे हैं! क्या करेगा उत्तराखंड ऐसे विकास का जो आख़िर में अपना ही पूर्वजों का बनाया घर जब खो रहा हो! अंग्रेज तक प्रकृति से बिल्कुल अनभिज्ञ था उसने तक छेड़ छाड़ नहीं की! बताते चलें हिमालय दुनिया के तमाम पहाड़ों में सबसे नया है जो आज भी बन रहा है. उत्तराखंड हिमालय का हिस्सा सबसे नाज़ुक और भंगुर है जिसकी वहन क्षमता से अधिक हम उस पर दबाव डाल रहे हैं जिसका परिणाम जोशीमठ के रूप में हमारे सामने आया है ये प्रारंभ समझा जा सकता है। जानकारों के अनुसार
उत्तराखंड भूकंप के अतिसंवेदनशील पाँचवे जोन में आता है! 4-5 का भूकंप भी उत्तराखंड में आ जाए तो दरार लिये जोशीमठ के इन तमाम घरों का क्या होगा? विकास की आवश्यकता किसे नहीं होती लेकिन विकास नियंत्रित व सतत होना चाहिये न कि जनविरोधी! लोग कहते हैं आपस में बैठक करके कि सरकारों से सवाल पूछने की हिम्मत जुटाइये! अगर सरकार के साथ खड़े होकर आपको लग रहा है कि सरकार आपके साथ खड़ी रहेगी तो जोशीमठ का हाल देख लीजिये! पुराने लोग कहते हैं कि यहाँ के लोगों को भी यही लगता था कि सरकार सिर्फ़ इनके हिसाब से चल रही है लेकिन आज जब इनको सरकार की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी तब इतनी देर से सुध ले रही है कि वो सुध जोशीमठ को दरकने से बचाने से ज़्यादा लोगों को फ़िलहाल के लिए सुरक्षित जगहों पर विस्थापित करने तक रह गई है!
वर्तमान सरकार के मुखिया पुष्कर धामी ने मामले को गंभीर माना है और पीएम नरेंद्र मोदी को इसकी पूरी जानकारी सचिव कार्यालय से भेजी जा चुकी है। उन्होंने कहा है सरकार राज्य हित में जो उचित होगा वो निर्णय लेगी।
जोशीमठ की जनता में दहशत पैदा होने लगी है इसलिए सरकार ने पहले लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाने का आदेश दिया है। सीएम पुष्कर धामी ने कहा है वह खुद मॉनिटरिंग कर रहे हैं हर स्तर पर सरकार जनता के साथ खड़ी है। लेकिन सवाल उठ रहा है कि उत्तराखंड को कैसे बचाया जा सकेगा ये जनविरोधी विकास और सर्वांगीण विकास की परिभाषा क्या होगी। बिना छेड़ छाड़ किए विकास होगा नहीं फिर कैसे उत्तराखंड राज्य को विकास के साथ ही बचाया जा सके ये गंभीर चिंता का विषय है वरना आने वाला कल किसीको माफ नहीं करेगा।
सम्पादक ।
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