*देव वटवृक्ष* *वैशाख अमावस्या/ वटवृक्ष पूजा* वैशाख भारतीय काल गणना के अनुसार वर्ष का दूसरा माह है. इस माह को एक पवित्र माह के रूप में माना जाता है. जिनका सम्बन्ध देव अवतारों और धार्मिक परम्पराओं से है. ऐसा माना जाता है कि इस माह के शुक्ल पक्ष को अक्षय तृतीया के दिन विष्णु के अवतारों नृसिंह, नर-नारायण परशुराम और ह्ययग्रीव का अवतार हुआ और शुक्ल पक्ष की नवमी को देवी सीता धरती से प्रकट हुई. वैशाख अमावस्या को *देव वटवृक्ष* की पूजा की जाती है. भारतीय संस्कृति में वृक्षों का विशेष महत्त्व है, क्योंकि वे हमारे जीवन के प्राण हैं. पुराणों तथा धर्म-ग्रंथों में पेड़-पौधों को बड़ा पवित्र और देवता के रूप में माना जाता है, इसलिए उनके साथ पारिवारिक सम्बन्ध बनाए जाते हैं. जब से वैज्ञानिकों ने यह सिद्ध कर दिया है कि पेड़-पौधों में भी जीवन होता है, लोक विश्वासों में दृढ़ता आई है, इसलिए पाप और पुण्य की अवधारणा भी उसके साथ जुड़ गई है और देव तुल्य वृक्षों का संरक्षण पुण्य व उनका विनाश करना पाप स्वरूप माना जाने लगा है.
धर्म ग्रंथों के अनुसार जो मनुष्य वृक्षों का आरोपण करते हैं, वे वृक्ष परलोक में उसके पुत्र होकर जन्म लेते हैं. जो वृक्षों का दान करता है, वृक्षों के पुष्पों द्वारा देवताओं को प्रसन्न करता है और मेघ के बरसने पर छाता के द्वारा अभ्यागतों को तथा जल से पितरों को प्रसन्न करता है. पुष्पों का दान करने से समृद्धिशाली होता है. ऋग्वेद में वृक्षों को काटने या नष्ट करने की निंदा की गई है. *मा काकम्बीरमुद्वृहो वनस्पतिमशस्तीर्वि हि नीनशः।* *मोत सूरो अह एवा चन ग्रीवा आदधते वेः॥* -ऋग्वेद 6/48/17 अर्थात् जिस प्रकार दुष्ट बाज पक्षी दूसरे पखेरुओं की गरदन मरोड़ कर उन्हें दुख देता है और मार डालता है, तुम वैसे न बनो और इन वृक्षों को दुख न दो. इनका उच्छेदन न करो, ये पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं को शरण देते हैं. मनुस्मृति में वृक्षों की योनि पूर्व जन्म के कारण मानी गई है और इन्हें जीवित एवं सुख-दुख का अनुभव करने वाला माना गया है. परम पिता परमात्मा ने वृक्ष का आविर्भाव संसार में परोपकार के लिए ही किया है, ताकि वह सदैव परोपकार में ही रत रहे स्वयं भीषण धूप, गर्मी में रहकर दूसरों को छाया प्रदान करना और अपना सर्वस्व दूसरों के कल्याण के लिए अर्पित कर देना वृक्ष का सत्पुरुष के समान ही आचरण को दर्शाता है. वृक्षों की छाया में बैठकर ही हमारे न जाने कितने ही ऋषि-मुनियों ने तपस्याएं की हैं.
विष्णु स्मृति के कूपतडागखननं तदुत्सर्ग विधान में लिखा है. वृक्षारोपयितुवर्बुक्षा परलोके पुत्रा भवन्ति वृक्षप्रदो वृक्षप्रसूनैर्देवाहे प्रीणयितफलैश्चतिधीन् छाययाचाम्भ्यागतान् देवे वर्षत्युदकेन पितृन् । पुष्प प्रदानेन श्रीमान् भवति ।
अर्थात् जो व्यक्ति वृक्षों को लगाता है, वे वृक्ष परलोक में उसके पुत्र होकर जन्म लेते हैं. वृक्षों का दान करने वाला, वृक्षों के पुष्पों द्वारा देवताओं को प्रसन्न करता है और मेघ के बरसने पर छाते के द्वारा अभ्यागतों को तथा जल से पितरों को प्रसन्न करता है,
पुष्पों का दान करता है वह समृद्धशाली बनता है. *वट सावित्री* के अवसर पर स्त्रियां अचल सौभाग्य देने वाले बरगद के वृक्ष की पूजा करती हैं. गुरुवार के दिन केले के वृक्ष की पूजा की जाती है. इसके पत्ते पर भोजन करना शुभ माना जाता है. पारिजात वृक्ष को कल्पवृक्ष मानकर पूजा जाता है.
अशोकाष्टमी के दिन अशोक वृक्ष की पूजा दुख को मिटाकर आशा को पूर्ण करने के लिए की जाती है. आंवले के वृक्ष में भगवान् विष्णु का निवास मानकर कार्तिक मास में इसकी पूजा, परिक्रमा करके स्त्रियां सुहाग का वरदान मांगती हैं.
आम के पत्ते, मंजरी, छाल और लकड़ी यज्ञ व अनुष्ठानों में उपयोग की जाती हैं. पीपल के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है. इस पर जल चढ़ाने, पूजा करने से संतान सुख मिलता है. इसके तने पर सूत लपेटना और परिक्रमा लगाने का भी विधान शास्त्रों में बताया गया है.
तुलसी की नित्य पूजा करके जल चढ़ाना और इसके पास दीपक जलाकर रखना भारतीय नारियों का एक धार्मिक कृत्य है. विष्णु भगवान की प्रिया मानकर इसका पूजन किया जाता है. तुलसीदल का काफी महत्त्व माना जाता है।
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