बिश्नी देवी शाह 13 साल की बाली उम्र में शादी, 16 साल की उम्र में पति का निधन। ससुराल व मायके वालों ने ठुकराया फिर भी जीवन संघर्ष रखा जारी। आजादी की लडाई में बिश्नी देवी शाह (Bishni Devi Shah ) ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका। पहली बार कुमाऊं के अल्मोडा में फहराया तिरंगा। बनी उत्तराखण्ड़ की पहली महिला जो आजादी की लडाई के लिये गई जेल। कहानी पहाड़ में जन्मी उस महिला की जिसने जीवन के थपेडों से हार न मानकर खुद लिखी अपनी तकदीर। स्वतंत्रता संग्राम में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका। फिर भी क्यूं नहीं मिल पाई उसे वो पहचान जिस की थी हकदार। कहानी पहाड़ की बेटी बिश्नी देवी शाह की।
बिश्नी देवी शाह का जीवन-संघर्ष
वक्त था 1902 का जब पूरा भारत आजादी के लिये लड़ रहा था। उसी दौरान उत्तराखण्ड़ के बागेश्वर में एक सामान्य परिवार में जन्म लिया बिश्नी ने, मात्र चौथी कक्षा तक पढने के बाद 13 साल की उम्र में बिश्नी की शादी करवा दी गई। शादी होने के बाद दाम्पत्य जीवन में प्रवेश कर चुकी बिश्नी देवी शाह भी ओर महिलाओं की तरह गृहस्थी में जुट गई। छोटे सपने, एक परिवार इससे ज्यादा शायद ही कुछ सोचा हो बिश्नी देवी ने। लेकिन शायद यह बिश्नी को भी मालूूम न था कि नियती ने उसके लिये कुछ ओर ही तय किया है। वह केवल चार दिवारी तक सीमित रहने के लिये नहीं बनी है। उसे तो बड़े-बड़े काम करने हैं।
पति की मृत्यु के बाद आजादी की लड़ाई में कूदी
शादी के तीन साल बाद ही पति की मृत्यु हो गई। ससुराल वालों ने उसे घर से निकाल दिया तो मायके वालों ने उसे घर में घुसने तक नहीं दिया। उत्तराखंड में इस दौर में पति के निधन के बाद महिलाओं पर कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए जाते थे। ऐसी महिलाएं संन्यासिनी बन जाती थीं। इन्हें माई कहकर बुलाया जाता था।लेकिन 16 साल की बिश्नी देवी संन्यासिन बनने के लिए पैदा नहीं हुई थीं। उसे तो कुछ बड़ा करना था, जिसके लिये उसका जन्म हुआ था। बिश्नी देवी इस दौरान स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ गई।
जब बिश्नी देवी शाह ने अल्मोड़ा नगरपालिका पर फेहराया तिरंगा
समय था २5 मई, 1930 का। अल्मोड़ा नगर पालिका में राष्ट्रीय ध्वज फहराने का निश्चय हुआ। स्वयं सेवकों का एक जुलूस, जिसमें महिलायें भी शामिल थीं राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिये नगर पालिका की ओर कूच करने लगे। इन्हें गोरखा सैनिकों द्वारा रोका गया। सैनिकों ओर आंदोलनकारियों में हुये आपसी झडप में मोहनलाल जोशी व शांतिलाल त्रिवेदी पर हमला हुआ और वे लोग घायल हुये। तब बिश्नी देवी शाह व उनके साथ कुछ अन्य महिलाओं ने संगठन बनाया। ओर अल्मोडा नगर पालिका पर झंडारोहण करने में सफल हुईं।दिसम्बर, 1930 में बिश्नी देवी शाह को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें अल्मोड़ा जेल में रखा गया। बिशनी देवी उत्तराखंड की पहली महिला थीं, जिन्हें गिरफ्तार किया गया था। लेकिन पहाड़ सी मजबूत बिश्नी देवी जेल में बिल्कुल भी विचलित नहीं हुईं।
जेल में वह प्रचलित गीत की पंक्तियां दोहराती थी–
“जेल ना समझो बिरादर, जेल जाने के लिये
कृष्ण का मंदिर है, प्रसाद पाने के लिए”
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