
बिंदुख़त्ता। हिंदू धर्म में सबसे अलग रंगों का पर्व होली महा शिवरात्रि के बाद पूर्ण यौवन में आ जाती है और उत्तराखंड में तो होलियारों की फिर क्या कहने! कोश कोश में होली के सुर और अंदाज निराले पुराने होली गायन के पद चिन्ह आज भी समाज में जिंदा तो हैं लेकिन वह सुर और अंदाज निराले कलाकार यादों में हैं और उनके पद चिन्ह पर आज भी कुमाऊं गढ़वाल की होली चरम पर है।
हर गांव में महिला होली प्रारंभ हुई है और हर मंदिर में होलियार एकत्र होकर होली मनाने लगे हैं! बिंदुखत्ता में आज भी होली जीवंत सुर ताल में गाई जाती है जो कुमाऊं गढ़वाल की साझा होली से और भी नए कलेवर में होली होती है! कह सकते हैं तराई और भाबर में होली कुमाऊं गढ़वाल की आज भी धूम मचाती है!
बिंदुखत्ता , गूलरभोज, सितारगंज, खटीमा, काशीपुर, किच्छा, शांतिपुरी, लालकुआं विधानसभा क्षेत्र में भी होली की टोलियां निकल गई हैं और घर पर बुलाने उनका स्वागत करने की परम्परा आज भी अनवरत रूप से जारी है। जिसके घर होली आती है वह घर आज भी होलियारों का जोरदार स्वागत करते हैं ये परम्परा ही होली को जीवंत बनाए रखे हुए है!
हर गांव में होली होती है और कमेटी होती है जिसमें अच्छा खासा कोष भी होता है और कमेटी के बर्तन होते हैं जो गांव में अन्य लोगों को भी आंशिक शुल्क पर दिए जाते हैं इससे कमेटी की आय भी होती है! आजकल बदल गई होली की टोलियां पुरुष वर्ग की जगह महिला वर्ग ने होली की कमान संभाली है।
बाजपुर सहित समूचे उधम सिंह नगर में जहां देखो होली की धूम मची है! कुमाऊं गढ़वाल की साझा होली से भाबर में भी लोगों की उत्तराखंड की वादियों का स्वाद मिल रहा है! आवत जावत से पहाड़ की होली ने भाबर में भी अपना जलवा कायम रखा है।




















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