नई दिल्ली, विशेष संवाददाता। जबरन धर्मांतरण को खतरा बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इसे ‘बहुत गंभीर’ मुद्दा करार दिया। कोर्ट ने कहा कि यह राष्ट्र की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित करता है। इसे रोका नहीं गया तो बहुत मुश्किल स्थिति पैदा होगी। केंद्र सरकार को इसके लिए हस्तक्षेप करना होगा।
अंकुश लगाने के लिए उठाए कदमों के बारे में बताएं न्यायमूर्ति एम.आर. शाह और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सरकार प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताए। केंद्र द्वारा जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए गंभीर प्रयास किए जाने चाहिए। हमें बताएं कि आप क्या कार्रवाई करने का प्रस्ताव रखते हैं। यह नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार के लिए भी खतरा पैदा कर सकते हैं।
संविधान पीठ के समक्ष हो चुकी है सुनवाई सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत से कहा कि इस मुद्दे पर संविधान पीठ के समक्ष भी सुनवाई हो चुकी है। इससे संबंधित दो अधिनियम हैं। एक ओडिशा सरकार का और दूसरा मध्य प्रदेश सरकार का। यह छल, झूठ या धोखाधड़ी, धन द्वारा किसी भी जबरन धर्मांतरण के नियमन से संबंधित हैं। ये मुद्दे इस अदालत के समक्ष विचार के लिए आए और उच्चतम न्यायालय ने कानून की वैधता को बरकरार रखा।
याचिका में निर्देश देने का आग्रह अदालत अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें डरा-धमकाकर और पैसे का लालच देकर धर्मांतरण पर अंकुश के लिए कड़े कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है। याचिका में कहा गया कि जबरन धर्मांतरण एक राष्ट्रव्यापी समस्या है, जिससे तत्काल निपटने की जरूरत है।
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