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बावनी ईमली का पेड़ आज भी जिंदा है, जानें क्या है इस पेड़ की कहानी जीवन की कलम से…

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फतेहपुर। आज लोग आजाद भारत में जो मन आए वह कर रहे हैं जाति धर्म के नाम पर देश को तोड़ा और मरोड़ा जा रहा है लेकिन ये लोग भूल जाते हैं उनको जिनकी बदौलत हम आज आजादी का जश्न मनाकर मनमर्जी कर रहे हैं। देश प्रेम के खातिर जिन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था उनको सिर्फ हम 15 अगस्त और 26 जनवरी को याद करते हैं फिर सब अपनी मन मर्जी करते हैं। किस तरह ये देश आजाद हुआ और कितने लोग गुमनाम शहीद हुए ये कोई जानने की कोशिश तक नहीं करता है जो दुखद है। भारत को आजादी दिलाने के लिए किस तरह कत्लेआम हुआ इसकी एक झलक आज हम प्रस्तुत करते हैं। यूपी के फतेहपुर में एक बावनी इमली का पेड़ आज भी है जो आजादी की कहानी को आज भी याद दिलाता है। महान क्रांतिकारी बदलाव के लिए अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे इसका नेतृत्व जोधा सिंह कर रहे थे उन्होंने 27 अक्टूबर 1857 को अपने साथियों के साथ महमूदपुर गांव में दमन चक्र चलाने वाले एक अंग्रेज दरोगा व सिपाही को जिंदा जला दिया था और फिर फतेहपुर में हिंदुस्तानियों का कब्जा हो गया। ये बात 28 अप्रैल 1858 को अंग्रेज कर्नल पावेल को पता चली तो उसने घोड़ों में अंग्रेज सेना को फतेहपुर भेज कर घटना के सभी जिम्मेदार क्रांतिकारियों को सजा देने का आदेश दिया। जोधा सिंह और उनके साथी तब इमली के पेड़ तले विश्राम कर रहे थे कि अंग्रेजों की सेना ने जोधा सिंह सहित उनके 52 साथियों को बंदी बना लिया। इसके बाद अंग्रेजी हुकूमत का आदेश आता है कि जोधा सिंह सहित सभी 52 लोगों को इमली के पेड़ पर ही लटका कर फांसी दे दी जाए। आदेश के तहत सभी 52 क्रांतिकारियों को अंग्रेजी सेना ने इमली के पेड़ पर लटका दिया और चले गए। अंग्रेजी सेना ने 28 अप्रैल 1858 को बावन लोगों को मौत की सजा दी। 37 दिन तक बावन लाशें इमली के पेड़ पर लटकी रही जिसमें अधिकतर लाशों को चील कौवे खा गए। ये बात 37 दिन बाद महाराजा भवान सिंह को पता चली तो वह 4 जून 1858 को इमली के पेड़ तले गए और उनके प्रयास से सभी लाशों को जमीन में उतारा गया और उनका संस्कार किया गया। ये इमली का पेड़ आज भी है जिसे बावनी इमली का पेड़ कहा जाता है अब यहां स्मारक है। उत्तरप्रदेश के फतेहपुर में ये पेड़ आजादी के आंदोलन का गवाह बनकर आज भी जिंदा है।

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